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________________ [ 12 ] यक्षिणी का परिचय एवं चित्र द्वारा मार्गदर्शन तो दूर नाम तक नहीं दिया है / इसके कारण ही यह परिचय-पत्र प्राचार्य के पक्षपातित्व का परिचायक मात्र है। वरना प्रसंगोपात् वहां यक्ष-यक्षिणी का नाम एवं परिचय देना अत्यन्त आवश्यक था / इतिहासकार को सत्य हकीकत लिख देना चाहिए किन्तु अभिनिवेश वश आचार्य ने चौबीस तीर्थंकरों के शासन रक्षक देव-देवियों के साथ पक्षपात कर "तीर्थंकर परिचय पत्र" को भी अपूर्ण ही रखा है। देव-देवियों के विषय में प्राचार्य दुरंगी नीति रीति अपना रहे हैं / इस विषय में इनके इतिहास में स्वीकार और इन्कार दोनों साथ साथ चलते हैं, जो अनुचित तरीका है। एक अन्य पुस्तक "सिद्धान्त प्रश्नोत्तरी" जो सर्वथा शास्त्र निरपेक्ष होने के कारण कल्पित है, इसमें प्राचार्य लिखते हैं कि- "देव देवियां कुछ देते नहीं हैं।" किन्तु प्रागमिक तथ्य इससे बिलकुल विपरीत ही है। क्योंकि प्राचार्य ही लिखते हैं कि कृष्ण की माता देवकी को कृष्ण द्वारा तेले (अट्ठम) के तप पूर्वक हरिणगमेषी देव को प्राराधना करने से गजसुकुमाल नामक पुत्र मिला था। खंड-१, पृ० 364 पर यथा xxx देवकी के मनोरथ की पूर्ति हेतु कृष्ण ने तीन दिन का निराहार तप कर देव का स्मरण किया / एकानमन द्वारा किया गया चिन्तन इन्द्र-महेन्द्र का भी हृदय हर लेता है, फलस्वरूप हरिणेगमेषी का आसन डोलायमान हुआ। वह आया।xxx xxx ( हरिणेगमेषी ) देव ने कहा—देव लोक से निकलकर एक जीव तुम्हारे सहोदर भाई के रूप में उत्पन्न होगा।xxx मीमांसा-प्राचार्य द्वारा कथित उक्त तथ्य से यह सिद्ध होता है कि देव-देवियां कुछ देते हैं / अगर देव की सहायता से पुत्र प्राप्ति
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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