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________________ * ॐ नमः स्याद्वादवादिने * श्री मृग नमो नमः [ प्रकरण-१ ] प्राक्कथन रागद्वेष विजेतारं, ज्ञातारं विश्व वस्तुनः / शक्र पूज्यं गिरामीशं, तीर्थेशं स्मृतिमानये / / जिसके वंदन, पूजन, सत्कार एवं सन्मान द्वारा राग-द्वेष प्रादि आन्तरिक शत्रु पर विजय पायी जाती है, ऐसे सुगृहीतनामधेय, सदैव स्मरणीय, इन्द्रपूज्य, स्याद्वादवादी तीर्थंकर परमात्मानों के नाम स्मरण पूर्वक द्रव्य-भाव मंगल करके, वर्धमानतपोनिधि, न्यायविशारद परमपूज्य गुरुदेव श्रीमद्, विजयभुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज साहब का शिष्य मैं [ मुनि भुवन सुन्दर विजय ] स्थानकमार्गी प्राचार्यश्री हस्तीमलजी महाराज द्वारा लिखित "जैन-धर्मका मौलिक इतिहास खंड-१ तथा खंड-२" पर मीमांसा करना चाहता हूं। श्वेताम्बर जैनमत में करीब 400 साल पहिले ऐसा मूर्तिभंजक हुआ जिसने मूर्तिपूजन के विषय में चैत्यवासी यतिओं की गलतो देखकर और मुसलमान सैयद के वचनों में आकर मूर्तिपूजा और मूतिमात्र का विरोध बोल दिया और ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि सिर दुःखता हो तो उसको काट डालना / इसी परम्परा के एक महाशय प्राचार्य हस्तीमलजी हैं अतः सज्जनों से प्रार्थना है कि जैनधर्म की रक्षा के सम्बन्ध में मेरी इस बात पर आप सावधान होकर ध्यान दीजिए / प्राचार्य हस्तीमलजी लिखित 'जैनधर्मका मौलिक इतिहास खंड-१, नया संस्करण जो 1982 में प्रकाशित हुआ है / खण्ड 1, नया संस्करण के मुख पृष्ठ और अन्तिम पृष्ठ पर चौबीस तीर्थंकरों के लांछन चिह्नों की तस्वीर छपी
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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