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________________ 23 तस्वीर-प्रतिमा-श्याकृति-चित्र से नफरत और नाराजगी करने वाले वे स्थानकपंथी आज तो अपनी जड़ी-जड़ायी तस्वीर एवं मले में लटकाने का तस्वीर युक्त लोकेट तैयार करवाकर अपने भक्तों को देते हैं। ___ किन्तु वर्तमान में तो ये लोग अपने गुरु के समाधिबंदिर तक बनवाते हैं / मेरठ में उनके गुरु का स्मारक स्वरूप कीर्तिस्तम्भ भी बना है, जिसके चारों ओर बाग, हरी दूब तथा बिजली प्रादि जगमगाते हैं, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि इन स्थानकपंथियों को वैमनस्य सिर्फ भमवान श्री तीर्थंकर परमात्मा की तस्वीर-प्राकृति-प्रतिमा से ही है, अन्य स्मृतिकारकों से नहीं। गुरु के समाधि मंदिर, माता-पिता की तस्वीर, सिनेमा के दृश्यों, जिनमन्दिर, जिनप्रतिमा प्रादि को देखकर मनुष्य को खुशीनाखुशी का मानसिक अध्यवसाय होता है / इन सब बातों से यह प्रत्यक्ष सत्य है कि जड़ में भी चेतन पर उपकार या अपकार करने की बड़ी शक्ति है। ...... जड़ का चेतन पर महान प्रभाव पड़ता है। जैसे वीर पुरुषों की तस्बीर-चित्र-स्टेच्यू देखकर हमारे में वीरता का संचार होता है। क्या साधुवेष या शास्त्र ग्रन्थों को देखकर सिर श्रद्धा से नल-मस्तक नहीं होता है ? सिनेमा के परदे पर दिखाये जाने वाले दृश्य जड़ होने पर भी देखने वालों पर उसका गहरा असर पड़ता है / जड़ शराब प्रात्मा के चैतन्य गुण को नष्ट तक कर देती है / जड़ कर्म पुद्गल ने ही अनन्त शक्तिशाली हमारी प्रात्मा को बंधन में बांध रखा है / साधुवेष पहिनने मात्र से ही व्यक्ति वंदनीय बन जाता है / उतना ही नहीं छोटी मुहपत्ती की जगह लम्बी मुहपत्ती बांधने पर प्रतीक बदल जाने से साधु की पहिचान तक बदल जाती है, यह मूर्तिपूजा का ही एक प्रकार है / कोई स्थानकपंथी साधु अपने मुंह पर लगायी मुहपत्ती को तोड़ दें तो फिर
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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