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________________ 16 या शरम से छूट न पाए। कुछ शास्त्र मान भी लिए, तो कुछ उनकी मनगढंत मान्यताओं के प्रतिकूल थे उनको छोड़ दिया, नये भी शास्त्र कुछ बना लिए। हो गया, भगवान महावीर की मूर्ति को ही छोड़ दिया, नाम लेने के अधिकार को तो बड़े चाव से सुरक्षित रखा। इतिहास के पन्ने मत उलटामो, उसमें तो जहां कहीं मूर्तिपूजा का ही समर्थन मिलेगा। इतिहास भी उन लोगों ने नया ही बना लिया, जिसमें से मूर्तिपूजा को निकाल दिया। अरे ! मूर्तिपूजा ! तूने क्या ऐसा अपराध किया था उन लोगों का, जिससे तेरे नाम से वे लोग कांप उठते हैं, एतराजी रखते हैं। हां ! विक्रम की सातवीं शताब्दी तक किसी अनार्य ने भी तेरे खिलाफ एक लफ्ज भी नहीं निकाला था। 1300-1400 वर्ष पूर्व सबसे पहिले अरब देश में मोहम्मद पैगम्बर ने तेरा बहिष्कार कर दिया, हां उसके पास समसेरों की बड़ी ताकत थी। वि० सं० 1544 के निकटवर्ती उपाध्याय श्री कमलसंयमजी लिखते हैं कि उस पैयगम्बर का अनुयायी फिरोजखान बादशाह दिल्ली के तख्त पर मारूढ़ होकर मन्दिर मूर्तियों को तोड़ने लगा। इधर उसी काल में लोकाशाह नामक एक जैन गृहस्थ प्रप. मानित होकर सैयद से जा मिला और उन म्लेच्छों के कुसंग से मूर्तिपूजा का जोर शोर से विरोध करने लगा। जैन शासन में मूर्तिपूजा के खिलाफ विद्रोह करने वाला यह प्रथम ही था। मुसलमानों की ओर से उसको मर्तिपूजा के खिलाफ प्रचार करने में बहत सहायता मिल गयी। एक सम्प्रदाय बन गया लोंकागच्छ के नाम से, किन्तु उनके अनुयायियों ने सत्य समझकर फिर से मूर्ति को अपना लिया और लोंकागच्छ में पुन: मूर्तिपूजा पूर्ववत् प्रारम्भ हो गयी। काल के प्रभाव से धर्मसिंह और
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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