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________________ - 13 प्राचार्य द्वारा रचित कल्पित इतिहास के उत्तर में मैंने यह मीमांसा द्वारा यत्किंचित् प्रयत्न किया है। प्रबुद्ध और विज्ञजनों को इस विषय में विशेष प्रयत्न करने की अत्यन्त आवश्यकता है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन समाज में विद्यमान सैंकड़ों सुविहित महासंयमी पंचाचार पालक-प्रसारक प्राचार्य भगवंतों के पवित्र कर कमलों में मेरी यह तुच्छ रचना समर्पण करता हूं एवं उन पूज्य प्राचार्य भगवंतों से करबद्ध सविनय निवेदन करता हूं कि स्थानकपंथियों की कुप्रवृत्तियों के प्रति आप कुछ सोचें। सिद्धान्त महोदधि स्व० प्राचार्य देव श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराज साहब के विद्वान् शिष्यरत्न, 108 वर्धमान तपप्रायंबील की अोली के प्राराधक, 108 से भी अधिक शिष्य-प्रशिष्यों के संयममार्गदर्शक और प्रवर्तक, न्यायविशारद मेरे पूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज साहब की इस मीमांसा–पुस्तक की रचना में निःसीम कृपा रही है, जिनकी अमिदृष्टि से ही यह मीमांसा पुस्तक प्रस्तुत है। प्रागमज्ञ, गीतार्थ मूर्धन्य, पूज्य पन्यास श्री जयोघोष विजयजी गणि महाराज साहब के शिष्य रत्न नव्यन्याय के प्रखर विद्वान मुनिराज श्री जयसुन्दर महाराज साहब की ज्ञानदान द्वारा मुझ पर अपार कृपा रही है, जिन्होंने प्रस्तुत मीमांसा पुस्तक की पांडुलिपि को जाँचकर अनेक प्रत्यंतोपयोगी सूचन करके अपूर्व मार्गदर्शन दिया है, साथ ही साथ इन संयमी महापुरुष ने 'पुरोवचन' स्वरूप प्रस्तावना लिखकर प्रत्यन्त उपकार भी किया है। विद्वान् मुनिराज श्री गुणसुन्दर विजयजी महाराज साहब ने भी "दो शब्द" लिखने द्वारा मेरे प्रति अपार वात्सल्य प्रगट करके बहुत उपकार किया है।
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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