SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 151 ] राजा विक्रमादित्य अचिन्त्य आत्म शक्ति के अनेक चमत्कारों को देखकर सिद्धसेन के परम भक्त बन गये।xxx मीमांसा–प्राचार्य एक ओर लिखते हैं कि अचिन्त्य प्रात्मशक्ति के चमत्कार ऐसे होते हैं, किन्तु प्रतिमा द्वेष के कारण दूसरी ओर वे लिखते हैं कि आधुनिक चिंतक इस पर विश्वास नहीं करते हैं / लगता है मन के अनिश्चित एवं चल विचलित परिणाम के कारण ही ऐसी परस्पर विरोध पूर्ण बातें प्राचार्य ने लिखी हैं। सच ही कहा है"विवेक भ्रष्ट का पतन अनेकशः होता है।" पापभीरु एक सामान्य जन भूल से भी झूठ बोलने से कांपता है, मगर भाचार्य होकर भी जानबूझ कर झूठ बोले तो उनकी दीक्षा निरर्थक है। -प्रागमैतर सबसे प्राचीन ग्रन्थ उपदेशमाला [ श्लोक-५०८ ]
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy