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________________ [ प्रकरण-२६] प्रति सुकुमाल और जिनमंदिर एक बार पूज्य आर्य श्री सुहस्ति महाराज अपने शिष्य समुदाय सहित अश्वशाला में ठहरे / स्वाध्याय के अवसर पर साधुओं के मुंह से देवलोक स्थित नलिनी गुल्म विमान का वर्णन सुनकर अवंति सुकुमाल को पूर्वजन्म का जाति स्मरण ज्ञान हो गया। उसने देवलोक के नलिनी गुल्म विमान से यहाँ मनुष्य जन्म लिया था, ऐसा जानकर उसने प्राचार्य प्रार्य सुहस्तिजी के पास चारित्र लिया और रात्रि में श्मशान में ध्यानस्थ रहा। वहां लोमड़ी और इसके बच्चों ने उपसर्गकर श्री अवंतिसुकुमाल मुनि को मरणान्त कष्ट दिया। समभाव मौर समाधि से मरण के बाद पुनः वे उसी नलिनी गुल्म विमान में उत्पन्न हुए। गुरु महाराज का उपदेश सुनकर माता और बत्तीस पत्नियों ने अपना शोक दूर किया और एक सगर्भा स्त्री को छोड़कर सभी ने वैराग्य पूर्वक चारित्र ग्रहण किया। समय पाकर सगर्भा स्त्री को पुत्र जन्म हुआ जिसका नाम महाकाल था। जिसने बड़े होकर अपने सांसारिक पिता की स्मृति में अवंति सुकुमाल मुनि के अग्निसंस्कार स्थान पर "अवंति पार्श्वनाथ" का मंदिर बनवाया। जो बाद में “महाकाल मंदिर" के नाम से महान तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। पूज्य हेमचन्द्राचार्य महाराज द्वारा रचित "त्रिषष्ठि शलाका पुरुष" नामक इतिहास में यह भी सूचित किया है कि
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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