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________________ [ 130 ] क्यों सत्य का पक्ष छोड़कर असत्य और झूठ का सहारा लेकर पुरानी लकीर के ही फकीर बन बैठे हैं ? सत्य के पक्षधर बनने में उनको कौन बाधा दे रहा है ? पुरानी लकीर के फकीर बनकर ही प्राचार्य ने एक विषेला सूत्र प्रचार करवाया है, यथा गुरु हस्ती के दो फरमान / सामायिक स्वाध्याय महान / / यद्यपि देखने में यह सूत्र निर्दोष लगे किन्तु इसके पीछे एकान्तवाद समाया हुआ है अतः उनका यह सूत्र गलत है। क्या सामायिक और स्वाध्याय ही महान हैं ? क्या तप, त्याग, ज्ञान-ध्यान, ब्रह्मचर्य, प्रभुभक्ति, गुरुसेवा, अहिंसा आदि धर्मकार्य महान नहीं हैं ? सच तो यह है कि फरमान करने वाले गुरु हस्तीमलजी है ही कौन ? किन्तु उनको पूछने वाला भी कौन है ? पूर्वजन्म के दीक्षादाता उपकारी गुरु प्रार्य श्री सुहस्ति महाराज को देखकर राजा संप्रति को पूर्वजन्म का स्मृतिज्ञान हो गया था। "पूर्वजन्म में गुरु ने दीक्षा देकर उपकार किया था, इसके कारण मैंने इस जन्म में राजऋद्धि पायी है" ऐसा सोचकर उपकारी गुरु के उपकार के बदले में गुरु की प्रेरणा से राजा संप्रति ने सवालाख जिन मन्दिर और सवा करोड़ जिनप्रतिमा बनवायी थीं। इस विषय में "जिन प्रतिमा मंडन" नामक सुप्रसिद्ध स्तवन में न्यायविशारद श्रीमद् यशोविजयजी उपाध्याय लिखते हैं कि वीर पंछी बसे नेवु वरसे, संप्रति राय सुजाण / सवा लाख प्रसाद कराव्या, सवा कोड़ी बिंब स्थाप्या,
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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