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________________ [ प्रकरण-२८] राजा सम्पति के साथ अन्याय स्थानकपंथी संप्रदाय के कर्णधार माने जाने वाले प्राचार्य ने अपने इतिहास में जिनमन्दिर एवं जिनप्रतिमादि विषयों पर तोड़मरोड़ की प्रक्रिया प्रचुर मात्रा में की है / आश्चर्य तो इस बात का है, प्राचार्य ने नामधारी समिति द्वारा जीचाहा इतिहास बनाया है, जिसको जैनधर्म का इतिहास कहना जैनधर्म की मजाक उड़ाने के समान है। प्राचार्य का इतिहास भ्रामक एवं कपोत कल्पित तत्त्वों से परिपूर्ण है, वह उनकी गरिमा के अनुरूप नहीं है / खंड-२, पृ० 633 पर प्राचार्य लिखते हैं कि xxx आर्यवृद्ध देव के पश्चात् आर्य प्रद्योतनसूरि गणाचार्य हुए / पटावलियों में इस प्रकार का उल्लेख उपलब्ध है कि अजमेर और स्वर्णगिरि में आपने प्रतिष्ठा करवायी थी / पर स्वर्गीय मुनि कान्तिसागरजी के अनुसार इतिहास के प्रकाशन में इस प्रकार के उल्लेखों की सच्चाई संदिग्ध मानी ___ मीमांसा-अजमेर और स्वर्ण गिरि में प्राचार्य श्री प्रद्योतनसूरिजी ने किसकी प्रतिष्ठा करवायी थी? जिनमूर्ति प्रतिष्ठा के इस सत्य को तो प्राचार्य ने छिपा ही लिया / कल्पसूत्र और नंदीसूत्र की प्राचीन पटटावलियों के प्रामाणिक ओर विश्वसनीय प्रमाण को छोड़कर इतिहासकार (! ) आचार्य ने अपना उल्लू सीधा करने के लिये स्वर्गीय
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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