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________________ [ 106 ] देवों और श्रेणिकादि भक्तों को निषेध अवश्य करते / यद्यपि भगवान जमालि जैसे अयोग्य और अप्रज्ञापनीय [ जड़बुद्धिवाला ] को निषेध्य का निषध नहीं करते, किन्तु इन्द्रादि देवों और अभयकुमार, श्रेणिकादि जैसे योग्य और प्रज्ञापनीय [ सुखबोध्य ] के सामने निषेध्य का निषेध नहीं करके अन्य विषय में उपदेश देने लगते, तो भगवान की निषेध्य में भी अनुमति है ऐसा सिद्ध हो जाता। भगवान प्राप्त हैं यानी वे योग्य और सुख बोध्य को अहित से निवर्तन और हित में प्रवर्तन करवाते हैं। भगवान ने देवों द्वारा होती पुष्पवृष्टि, चंवर ढुलाना और बलि उपहार प्रादि का निषेध नहीं किया है, इससे द्रव्यपूजा के विषय में भगवान की अनुमति स्पष्ट सिद्ध होतो है / ऐसा ही श्रेणिक आदि का चतुरंगी सेना के साथ जाना एवं सूर्याभदेव तथा जीर्णकुमारिओं के माटक के विषय में भी जानना चाहिये / आगम शास्त्रों एवं प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य वृत्ति, चूणि, भाष्य, टीकादि कथित और पूर्वाचार्यों विहित (निरूपित) तथा हजारों सालों के प्राचीन शिलालेख, जिनमूर्तियों पर लिखे लेखों से मूर्ति और मूर्ति की मान्यता सिद्ध होते हुए भी जिनमूर्तिपूजा में हिंसा हिंसा की पुकार करने वालों की दयाधर्मिता पालू, मूली, गाजर आदि अनन्तकाय भक्षण करते वक्त एवं बासी तथा द्विदल खाते समय कहाँ चली जाती है, यह समझ में नहीं पाता। विहार के समय नदी उतरना, बर्तन खोलकर अतिउष्ण पेय चाय आदि ग्रहण करना, वर्षा बरसते समय भी प्रवचन रखना, नारियल की प्रभावना करना, इत्यादि हिंसा को दयाधर्मी प्राचार्य क्यों मान्यता देते हैं ? इन सब स्थानों पर प्रश्न व्याकरण के उपदेश"धर्महेतु की जाने वाली हिंसा भी अधर्म है" को प्राचार्य क्यों भूल जाले
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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