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________________ [प्रकरण-२३ ] लग्धिनिधान श्री गौतमस्वामी प्रातःस्मरणीय, विनयवन्त, लब्धिनिधान प्रथम गणधर श्री गौतम स्वामी महाराज 14 विद्या के पारंगत थे / भगवान श्री महावीर देव के तीन ही पद [उपने ईवा, विगमेईवा, धूवेईवा ] पाकर जिनके हृदय में द्वादशांगी का प्रकाश हुआ था। वे इतने विनयवन्त थे कि दीक्षा दिन से ही अहं का त्याग कर भगवान के सामने अंजलिबद्ध बैठकर भगवान की वाणी को निधान से भी अधिक मूल्यवाली समझते हुए सुनते थे। उनकी सरलता इतनी थी कि भूल मालूम होने पर चौदहपूर्वधारी उन्होंने प्रानन्द श्रावक से क्षमायाचना की थी। ऐसे पवित्र चारित्रघर श्री गौतमस्वामी श्री महावीर स्वामी के वचन पर अपनी चरम भविता के निर्णय तथा यात्रा हेतु स्वलब्धि बल से सूर्य की किरणों का सहारा लेकर श्री अष्टापदजी तीर्थ पर गये थे, जहां श्री ऋषभदेव भगवान की निर्वाण भूमि पर प्रथम चक्रवर्ती भरत राजा ने मंदिर बनवाया था। तीर्थयात्रा काल में ही उन्होंने श्री वज्रस्वामी जो पूर्वभव में तिर्यग् भग देव था, उनको प्रतिबोध किया था और अष्टापद तीर्थ की यात्रा हेतु लब्धि प्राप्ति के लिये तप करते हुए 1500 तापससन्यासियों को चारित्र-दीक्षा देकर, अक्षीण महानस लब्धि के बल से अंगूठे में से अमृत तुल्य खीर बहाकर पारणा करवाया था, प्रतःमाज भी लोग श्री गौतमस्वामी के विषय में कहते हैं कि अंगूठे अमृत बसे / वे
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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