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________________ [ 65 ] (22) बासी और द्विदल भक्षण में त्रसकाय जीवों की महा हिंसा का होना। (23) थूक आदि में सम्मच्छिम जीवों की उत्पत्ति होना। (24) रात्रि भोजन नरक का द्वार है / (25) जीव, संसार और कर्म अनादि हैं। (26) नमक, पत्थर, सोना, चांदी आदि पृथ्वीकाय एकेन्द्रिय नरत हैं। ऐसी तो सैंकडों बातें हैं, जिनकी प्रामाणिकता और सत्यता को सिद्ध करने के लिये हमारे पास आगमों और प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य को छोड़कर आधार ही क्या है ? प्राप्तपुरुष तीर्थंकरों एवं पूर्वाचार्यों के वचनों पर श्रद्धा और विश्वास के प्रभाव में प्राप्तपुरुष कथित इन बातों पर प्रश्रद्धा और अविश्वास बना रहे तो इसमें क्या गुरुगम और समुचित अभ्यास के अभाव में ज्योतिष आदि शास्त्र अज्ञानी को व्यर्थ या झूठ लगे, ऐसे ही गुरुगम और समुचित स्याद्वाद परिणतमति के अभाव में आचार्य हस्तीमलजी को पंचमहाव्रती पूर्वाचार्यों कथित बातें चमत्कारिक एवं कल्पित लगे तो कोई प्राश्चर्य की बात नहीं है। आज के युग के कथित कतिपय नास्तिक चिंतकों की संतुष्टि हेतु प्राचार्य ने जैन साहित्य को बदलने और छिपाने की जो सुधारवादी प्रवृत्ति की है, इससे जैन समाज को सावधान एवं सतर्क रहने की प्रत्यंत स्वयं सुधारवादी वृत्तिवाले प्राचार्य दूसरों को प्रात्मवंचक हितशिक्षा खंड-२, पृष्ठ 26 पर देते हैं कि
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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