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________________ [ 2 ] को मानने के लिये अधिकांश अाधुनिक चिंतक किसी भी दशा में विश्वास नहीं कर सकते / " किन्तु प्राचार्य हस्तीमलजी का उक्त प्रतिपादन नितांत गलत और स्वमति कल्पित है क्योंकि अखबारों में प्रसिद्ध होने वाली बहुत सी चमत्कारिक घटनाओं को आज के चिंतक सत्य तथ्य स्वीकार करते हैं। हमारा तो यही मानना है कि आज के युग के अधिकांश चितकों" में आचार्य भी एक हैं, जिन्होंने पूर्वाचार्यों के प्रामाणिक कथनों पर अप्रामाणिक आक्षेप करके बगावत की है। प्राचार्य के पास ऐसा कौनसा यंत्र है जिससे वे जान सकें कि चमत्कारपूर्ण घटना पर आज के युग के चितक विश्वास नहीं करते हैं ? प्राचार्य निज के विषय में तो ऐसा कह सकते हैं, किन्तु अधिकांश चिंतकों के विषय में ऐसी कल्पना उनके अधिकार के बाहर है / हमारा तो यह कहना है कि पूर्वाचार्यों के विषय में प्राचार्य ऐसी संकुचित मान्यता क्यों रखते हैं कि पूर्वाचार्यों ने प्रागमेतर जैन साहित्य गलत रचा है। आज के विज्ञान के युग में जैनागमों की बहुत सी बातें जो पहिले विदेशी शिक्षितों में अविश्वसनीय एवं काल्पनिक मानी जाती थीं, आज वे प्रामाणिक सिद्ध हुई हैं / जैसे कि पूर्व भव का होना, वनस्पति एकेन्द्रिय जीव है, पानी में असंख्य जीव का होना, आवाज का पौद्गलिक होना, एक भाषा में बोला गया शब्द अपनी अपनी भाषा में सुनना आदि अनेक जैनागम कथित बातें विज्ञान द्वारा सिद्ध हो चुकी हैं। चमत्कारपूर्ण घटनाएं प्राधुनिक चिंतकों को अविश्वसनीय लगती हैं इसके कारण उनको अपने इतिहास में लिखना प्राचार्य ने अनुचित समझा है। फिर तो जैन धर्म का त्याग-तप-संयमादि की बातें अधिकांश प्राधुनिक चिंतकों को प्ररुचिपूर्ण और अविश्वसनीय लगती हैं, तो क्या प्राचार्य जैन धर्म को अविश्वसनीय मानकर त्याग देंगे?
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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