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________________ [ 88 ] 888 ये साधु चैत्यों और मठों में रहते हैं / पूजा करने का आरम्भ एवं देवद्रव्य का उपभोग करते हैं। Xxx मीमांसा-मठ शब्द से प्राचार्य का क्या तात्पर्य है ? और चैत्य शब्द का अर्थ यहां भी उन्होंने नहीं किया है। किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि उस समय भी जिनप्रतिमा, जिनमन्दिर और जिनपूजन प्रथा थी। और देवद्रव्य भी था इस सत्य तथ्य की ओर अांखें मूंद लेना अनुचित ही होगा। और यह भूलना नहीं चाहिए कि उस समय भी पूज्य हरिभद्रसूरिजी, पूज्य अभयदेवसूरिजी आदि सूविहित मुनि विद्यमान थे, जिन्होंने चैत्यवास सम्बन्धित शिथिलता का विरोध करते हुए भी जिनमन्दिर और जिनप्रतिमा आदि शास्त्र कथित प्रवृत्तियों की प्ररूपणा एवं पुष्टि की थी और प्रेरणा भी दी थी। खंड 2, पृ० 628 पर प्राचार्य लिखते हैं कि 888 उपलब्ध साहित्य के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि विक्रम संवत् 1285 से "चैत्यवास" सर्वथा बन्द हो गया और मुनियों ने उपाश्रय में उतरना प्रारम्भ कर दिया। XXX मीमांसा-हमारा तो इतना ही कहना है कि जिन सुविहित, प्रागमज्ञ मुनियों ने चैत्यवास सम्बन्धी शिथिलता को सामने टक्कर लेकर चैत्यवास को समाप्त किया था, उन्होंने ही जिनमन्दिर, देवद्रव्य, रक्षण आदि के विषय में प्रेरणा की थी। यानी जो सिरदर्द था उसे औषधि से मिटाया था, किन्तु सिर को काटने की मूर्खता इन सुविहित मुनियों ने नहीं की थी, इस सत्य तथ्य से प्राचार्य हस्तीमलजो अपरिचित नहीं होंगे। साधवः शास्त्र चक्षुषः साधुनों ज्ञान आँख से देखते हैं /
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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