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________________ [ 85 ] [प्रतिमा को वान्दे / हे गौतम ! विद्याचारण के विषय में ऊर्ध्वगमन का इतना विषय है।" उक्त सूत्र का स्थानकपंथी संत अमोलक ऋषि पागमनिरपेक्ष एवं स्वमति कल्पित अर्थ इस प्रकार करते हैं 80xगौतम का प्रश्न-हे भगवन् ! विद्याचारण का ऊर्ध्व गमन का कितना विषय कहा है ? अहो गौतम ! विद्याचारण मुनि एक उत्पात में यहाँ से उड़कर मेरुपर्वत के नन्दन वन में विश्राम लेवे / वहां ( चैत्य यानी ) "ज्ञानी के ज्ञान" का गुणानुवाद करे (?) वहां से दूसरे उत्पात में पंडकवन में समवसरण करे (विश्राम लेवे) वहां पर भी ज्ञानी के ज्ञान का गुणानुवाद करे (?) और वहाँ से भी पीच्छा अपने स्थान पर आवे / अहो गौतम ! विद्याचारण मुनि का ऊर्ध्वगमन का इतना विषय है। XXX मीमांसा-स्थानकपंथी संत अमोलक ऋषि ने उक्त प्राकृत सूत्र का "इह चेइयाइं वंदई" [यानी यहाँ आकर अशाश्वत जिनमन्दिर को वान्दे 1 इतने शब्दों का हिन्दी अनुवाद करना ही छोड़ दिया है जिससे उनकी बेईमानी जाहिर होती है / ___ अमोलक मुनिजी ज्ञानियों के प्ररूपी ज्ञान के वन्दन हेतु चारणमुनियों को पंडकवन और नन्दनवन में भेज रहे हैं, मानों पंडकवन और नंदनवन में ज्ञानी के ज्ञान के ढेर पड़े होंगे / पंडकवन और नंदनवन में शाश्वत जिन मन्दिर है, इस तथ्य की सिद्धि न होने पाए, इस कारण अमोलक ऋषिजी असत्य का सहारा लेकर चैत्य का अर्थ ज्ञान करते हैं जो सर्वथा अप्रमाणिक है / स्थानकपंथी अमोलक ऋषि की साहसिकता देखिये कि ज्ञानी के प्ररूपी ज्ञान के वन्दन हेतु पंडकवन और नन्दनवन में
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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