SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 74 ] कमल पर चलना आदि क्रियाएं क्या बाह्य प्राडम्बर नहीं है ? देवों द्वारा होती पुष्पवृष्टि, चंवर ढुलाना तथा सूर्याभदेव और जीणकुमारियों का नाटक प्रादि भगवान श्री तीर्थंकर की मौजूदगी में भी होता था, इन प्रवृत्तियों को प्राप्त भगवान ने बाह्य प्राडम्बर कहकर हेय या त्याज्य नहीं कहा है। प्राचार्य श्री मानतुग सूरि महाराज ने भी "भक्तामर स्तोत्र" श्लोक-३३ में तीर्थंकरों के बाह्याडम्बर-ठाठ-शोभा-विभूति का वर्णन किया है, यथा xxx इत्थं यथा तव विभूतिरभूजिनेन्द्र / धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य // xxx महान तत्त्व ज्ञानियों ने इस बाह्याडम्बर को भी अन्य जैनेतर भद्रक भव्य जीवों को जैनधर्म के प्रति आकर्षण करने और जैनधर्म प्रेमी बनाने के लिये प्रबल हेतु माना है। मगध सम्राट श्रेणिक, कूणिक, दर्शाणभद्र आदि बड़े बड़े राजा महाराजा भी भगवान के दर्शन हेतु बड़े ठाट बाट के साथ गये हैं। और यह पूर्ण सत्य है कि प्राप्त भगवान ने कभी भी इनको आडम्बर की संज्ञा नहीं दी है। खंड 1, पृ० 617 पर प्राचार्य लिखते हैं कि 444 राजा श्रेणिक को भगवान पधारने की सूचना मिली तो वे राजसी शोभा में अपने अधिकारियों, अनुचरों और पुत्रों आदि के साथ भगवान की वन्दना करने को निकले और विधिपूर्वक बंदन कर सेवा करने लगे।xx
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy