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________________ गोरा बादल परमणी पपई काम कुछ जटिल हो गया-अनेक संकट और कठिनाइयां, जीवन की ऊबड़ खाबड़ भूमियों के बीच जीवन और मरण, ये सब डेहली डोर साबाण सराचा, कटक तणा सिणगार / घड़िया जोणी, साँढ पलाणी, पूठ परठिया भार / और मैं चला। कथा कुछ दुखद हो गई। बड़ोदा विश्वविद्यालय में जाने के पश्चात् मुनिश्री ने फिर स्मरण दिलाया कि तुझे यह करना है; और इसके प्रकाशन का आश्वासन भी मुझे मिला / हेमरतन की जितनी प्रतियाँ मुझे बम्बई तक प्राप्त हुई उनका उपयोग मैंने बम्बई में ही कर लिया था। इसके बाद मुझे इसकी एक प्राचीनतम प्रति मिल गई जिसने इस संस्करण का आधार प्रस्तुत किया / अब प्रेस-प्रति तैयार करने में फिर से उतना ही कार्य बढ़ गया जितना किसी आलोचनात्मक संस्करण का प्रारम्भ से अन्त तक होता है / अत: जितना-जितना काम होता जाता उतनाउतना में मुनिजी को भेजता जाता और वह छपता जाता। इसी बीच में अनेक बाधाएं उपस्थित हुई। मेरी पत्नी की निराशाजनक अवस्था ने मेरे संयम और मानसिक सन्तुलन को बिलकुल नष्ट कर दिया। मुनिजी की प्रेरणा और उनके उत्साहवर्द्धन ने इस कार्य को समाप्त करने में सहायता की। प्रफ देखने तथा मूल पाठों को सुधारने का कार्य भी मुनिजी को ही करना पड़ा। कार्य समाप्त हो गया और इधर पत्नी की जीवन लीला भी समाप्त हो गई। भूमिका का कार्य रुक गया / प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन रुक गया। अतः इसका प्रकाशन देर से हो रहा है / प्राशा है पाठक मेरी विवशता को समझेंगे / ___ मुनिजी इस अवस्था में भी अपने कार्य में संलग्न रहते हैं। अपने कार्य में व्यस्त रहते हुए भी उन्होंने मुझे प्रेरणा दी, उत्साहित किया और मार्ग-दर्शन भी। उनकी मुझ पर कृपा है, उनका प्राभारी हूँ / एक शिष्य पर गुरु की कृपा का भार तो जीवन भर ही रहता है, वह तो उसकी सम्पत्ति है, उसका प्रदर्शन कर वह उसको लौटाना नहीं चाहता / बैशाखी मंगलवार, 13 अप्रेल, 1965 विक्रम-विश्वविद्यालय, उज्जैन / उदयसिंह भटनागर
SR No.032833
Book TitleGora Badal Padmini Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemratna Kavi, Udaysinh Bhatnagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1997
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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