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________________ सञ्चालकीय वक्तव्य कोई 50 वर्ष पूर्व, जब हम पाटण के जैन-भण्डारों का अवलोकन कर रहे थे / तब हमें हेमरत्न की इस रचना का प्रथम परिचय प्राप्त हुआ। मेवाड़ और चित्तौड़ के प्राचीन इतिहास को जानने की हमारी रुचि बचपन से ही बनी हुई थी। हमने हेमरत्न की इस रचना को भी प्रकाश में लाने का तभी मनोरथ कर लिया था। अपने देश के प्राचीन इतिहास के अज्ञात, अप्रकाशित, एवं अलभ्य ऐसे साधनों को-प्रबन्धों, ग्रन्थों, शिलालेखों, प्रशस्तियों आदि को प्रकाश में लाने का हमारा सतत लक्ष्य रहा और इस दृष्टि से आज तक अनेकानेक अप्रकाशित ऐतिहासिक साधन-सामग्री को प्रकाशित करने का प्रयत्न भी करते रहे हैं / संवत 1636 में उदयपुर में राजस्थान हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन में हमारा पाना हुमा और हमने राजस्थान के प्राचीन इतिहास की सामग्री का अन्वेषण, संशोधन, प्रकाशन प्रादि कार्य के विषय में भी अपने राजस्थानी बंधुनों को समयोचित प्रेरणा दी। उसके बाद तुरन्त ही, प्रो० श्री उदयसिंहजी भटनागर बम्बई में हमारे पास भारतीय विद्या-भवन के एक शोधकर्ता विद्याभिलाषी के * रूप में पहुंचे। मैंने इनको उसी समय पद्मिनी की चउपई जैसी रचना का अध्ययन और अनुसन्धान करने का सुझाव दिया। मेरे पास जो इसकी प्रतियां थीं वे इनको दी। इन्होंने कार्य प्रारम्भ किया, परंतु बाद में ये वहां से चले गये और अपने अन्य कार्य-क्षेत्र में लग गये। सन् 1950 में जब राजस्थान के इस 'प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान' की मूल रूपरेखा बनी तो हमने इस प्रकार के राजस्थान के प्राचीन इतिहास के अनेक ग्रन्थ प्रसिद्धि में लाने का कार्यक्रम बनाया / . कान्हड़दे प्रबन्ध, क्यामखां रासा, लावा रासा, वीरमायण, मुंहता नणसी री ख्यात, बांकीदास री ख्यात व सूरजप्रकाश आदि ग्रन्थ इसो कार्यक्रम के अनुसार यथा-समय प्रकाशित किये गए / प्रस्तुत 'पदमिणी चउपई' भी उसी कार्यक्रम में सम्मिलित थी। डॉ० भटनागर ने इस बीच अपना कार्य चालू रखा और उन्होंने इस रचना पर पी-एच० डी० को पदवी प्राप्त करने के लिये विस्तृत निबन्ध भी तैयार किया / जब मैंने पहले-पहल इनको यह कार्य करने की प्रेरणा दी थी उसके कोई 12 वर्ष अनन्तर ये मुझे जयपुर में मिले / मैंने इनके कार्यों को देखा और सूचित किया कि यदि ये इसकी ससंपादित प्रति तैयार कर सकें तो उसको 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' द्वारा प्रकाशित कर दिया जाय / इन्होंने सहर्ष स्वीकार किया और तदनुसार मैंने तत्काल इसको बम्बई के सुप्रसिद्ध निर्णयसागर प्रेस में छपने दे दिया / परन्तु, श्री भटनागरजी को कुछ निजी
SR No.032833
Book TitleGora Badal Padmini Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemratna Kavi, Udaysinh Bhatnagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1997
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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