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________________ गोरा बादल पदमपी पपई विद्वान लेखक ने 'त्रिरोत्तर' का अर्थ तीन (3) मान लिया है, जो ठीक नहीं है / वैसे भी 'त्रिरीत्तर' का अर्थ त्रिदशोत्तर होता है। पर यह पाठ ही अशुद्ध है / शुद्ध पाठ "त्रिहोत्तरे" है जिसका अर्थ 73 होता है। हेमरतन का रचनाकाल वि० स० 1636 पोर 1673 के बीच मानने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वि० स० 1636 में उसकी आयु 25 वर्ष के लगभग होगी। इस दृष्टि से उसका जन्म वि० स० 1611 के आसपास हुमा होगा / हेमरतन के एक शिष्य कुंवरसी की एक रचना 'नवपल्लवपार्श्वनाथ' श्री अगरचन्द नाहटा के संग्रह में है / उसके अनुसार हेमरतन का वि० स० 1681 में होना पाया जाता है / इस दृष्टि से वि० स० 1681 में हेमरतन की आयु 70 वर्ष के लगभग होगी। इसके बाद वे 10 वर्ष और जीवित रहे होंगे / अतः हेमरतन का निधन वि० स० 1660 के पास पास ठहरता है। इस प्रकार हेमरतन का जीवन काल वि० स० 1611 और 1660 के बीच निश्चित होता है। . पदमरिण चउपई की ख्याति और महत्त्व : चित्तौड़ की प्रसिद्ध रानी पद्मिनी को इतिहास-प्रसिद्ध कथा को लेकर लिखी जाने वाली यह प्रथम उपलब्ध राजस्थानी रचना है। इसकी रचना के 48 वर्ष पूर्व मियाँ जायसी अपना पदमावत अवधी बोली में रच चुके थे। __ स्पष्ट है कि युग की परिस्थितियों ने ही हेमरतन को इस रचना की प्रेरणा प्रदान की थी। वि० स० 1633 में हल्दीघाटो का प्रसिद्ध युद्ध हो चुका था, जिसमें महाराणा प्रताप के अटल धैर्य और कुल की मान-मर्यादा की परीक्षा हुई थी। वे न तो अकबर के आगे झुके और न अपनी बहन-बेटी को अकबर के हरम में पहुंचा कर राज्य-सुख ही भोगा / कठिन संघर्ष और रक्त-प्रवाह तथा त्याग और बलिदान के द्वारा वि० स० 1643 में उन्होंने अपने खोये हुए राज्य को पुनः अपने अधिकृत कर लिया था / रह गया केवल चित्तौड़ ! जिसकी प्राप्ति के लिये अन्तिम प्रयत्नों में वि० स० 1653 में उन्होंने अपने प्राण त्याग किये / महाराणा प्रताप की यह आदर्श गौरव गाथा देश में दूर दूर तक गायी जाने लगी। उनकी यह प्रणबद्ध अटलता, अडिगता और अणनमता सभी के लिये एक आदर्श उदाहरण बन गई थी। साहित्य में भी यह नवीन प्रादर्श एक नवीन उत्साह लेकर खड़ा हुआ था, जिसने लोगों के मन में देशभक्ति की भावना प्रतिष्ठित की। लोग इस त्याग पर अभिमान करने लगे। जैन लेखकों पर भी इसका प्रभाव कम नहीं पड़ा / पद्मसागर ने तो अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ
SR No.032833
Book TitleGora Badal Padmini Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemratna Kavi, Udaysinh Bhatnagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1997
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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