SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना 19 स्थापित करता है तो दूसरी ओर वह उन आदर्शों द्वारा भगवत्प्राप्ति की ओर संकेत करता हुआ साधना और भक्ति के स्थूल तथा सूक्ष्म तत्वों में भी प्रवेश करता है / जहाँ धर्म सम्बन्धी रचनाएँ धार्मिक तत्वों और सिद्धान्तों के सीमित क्षेत्र में ही देख पड़ती थी वे अब लौकिक चरित्रों और लौकिक व्यवहारों के साथ सामंजस्य स्थापित करने लगी। जैन साहित्य की अनेक रचनाएं ऐसे ही पात्रों के चरित्र को लेकर सामने आई, जो इन आदर्शों के कारण लोकप्रिय हो रहे थे। ये आदर्श पहले जैन धर्म तक ही सीमित थे। फिर जैनेतर चरित्र भी उन आदर्शों के साथ समाविष्ट हुए। धीरे-धीरे जैन लेखकों ने जैनेतर विषयों और चरित्रों को भी अपने काव्य का विषय बना लिया, और इस प्रकार अनेक जैन लेखकों द्वारा उत्तम कोटि के चरित-काव्य रचे गये, जो राजस्थानी भाषा और साहित्य की अमूल्य निधि बन गये / हेमरतन इसी प्रकार का एक कवि था, जिसने जैन होकर भी जैनेतर वस्तु और पात्रों को अपने काव्य का विषय बनाया। इस युग में इस प्रकार की अनेक रचनाएँ हुई, जो जैन साहित्य की ही अमूल्य निधि नहीं हैं / उनको राजस्थानी भाषा और साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। राजस्थानी साहित्य के विविध रूपों की परम्परा और विकास की द्योतक ये जैन रचनाएँ ही हैं, जिनसे साहित्य के इतिहास के लिये सम्बन्धित सामग्री भी परिपूर्ण मात्रा में प्राप्त होती है / हेमरतन के अनेक ग्रन्थ पिछली खोज में प्राप्त हुए हैं, जिनसे उसके अपने युग का एक महत्वपूर्ण कवि होने का संकेत मिलता है / उसकी प्राप्त रचनाओं में 'पदमणि चउपई' यहाँ प्रस्तुत है। हेमरतन के जीवन के विषय में बहुत कम सामग्री प्राप्त है। राजस्थानो लेखक इस दृष्टि से इतिहास लेखक की पोथी में बहुत बदनाम हुआ है / पर अपने महत्व को प्रशस्ति स्थापित करना राजस्थानी लेखक ने कभी अपने जीवन का उद्देश्य नहीं बनाया / उसका उदेश्य रचना और तद्गत विषय को प्रस्तुत करना था। इसीलिये उसने विषय और वस्तु को ओर अधिक ध्यान दिया / उसने ग्रन्थ के प्रारम्भ तथा अन्त में अपने आराध्य तथा आश्रय का उल्लेख कर उनके साथ अपना सम्बन्ध स्थापित किया है / चाहे वह धार्मिक क्षेत्र हो, चाहे साम्प्रदायिक, चाहे लौकिक क्षेत्र हो, चाहे पारलौकिक, सभी में. राजस्थानी लेखक की यही स्थिति रही है कि उसने अपने व्यक्तित्व को अपनी कृति में कहीं उभरने नहीं दिया। इस कारण इतिहास-लेखक ने एक अोर उसकी रचनामों को कृत्रिम कहा और दूसरी ओर उसकी सन्दर्भ-सामग्री का उपयोग भी किया / हेमरतन की रचनामों में 'पदमणि चउपई' का विषय इतिहास से संबंध
SR No.032833
Book TitleGora Badal Padmini Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemratna Kavi, Udaysinh Bhatnagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1997
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy