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________________ गोरा बादल पदमणी पपई 3. हेमरतन वर्ग : इस लेखक की अनेक रचमाएँ खोज में प्राप्त हुईं। प्रस्तुत रचना 'पदमिणी चउपई' की ही अनेक प्रतियां प्राप्त हुईं। उनमें से निम्न लिखित प्रतियां महत्वपूर्ण हैं (1) श्री रविशंकर देराश्री (बनेड़ा) की प्रतिः-उक्त प्रति की एक फोटो प्रति श्री देराश्री ने मुझे उपयोग के लिये दी थी / इसमें रचनाकाल वि० सं० 1645 दिया गया है और लिपिकाल 1646 / इसमें प्रशस्ति सहित कुल 618 छन्द हैं। पर यह हेमरतन की मूल प्रति नहीं है और न सं० 1646 में लिपीकृत मूल प्रति ही / इसमें जो क्षेपक दिये गये हैं उनसे लगता है कि यह उक्त संवत 1646 में लिखित किसी हाथ-पड़त की प्रतिलिपि है। फिर भी यह मूल रचना के सबसे अधिक सन्निकट है और पाठ भी सबसे अधिक शुद्ध और मौलिक है। (2) मुनि श्री जिनविजयजी की दो प्रतियो:-पहली प्रति में रचनाकाल सं० 1645 और लिपिकाल सं० 1661 है। इसका प्राकार 10 इंच लम्बा और 4.5 इंच चौड़ा है। इसमें 20 पत्र और 654 छन्द हैं / पाठ की दृष्टि से उक्त भाषा के विकसित रूपों का प्रयोग इसमें मिलने लगता है। दूसरी प्रति जो ऊपरवाली (पहली) प्रति के अधिक सन्निकट है, वि० सं० 1726 की लिखित है / इसका प्राकार पौने दस इंच लम्बा और साढ़े चार इन्च चौड़ा है / 26 पत्रों पर 651 छन्द हैं। इसमें पहली प्रति की भाषा के अधिक विकसित रूप मिलते हैं / (3) वर्द्धमान ज्ञान मन्दिर, उदयपुर की प्रति:-यह प्रति वि० सं० 1785 में ढाका में लिखी गई थी। इसका आकार 6 इंच लम्बा और 5 इंच चौड़ा है। इसमें 102 पत्रों पर 675 छन्द दिये हैं। यह प्रति खण्डित है और प्रारम्भ के 61 छन्द नष्ट होगये हैं। क्षेपक तथा पाठान्तर होने पर भी इसके छन्द मूल छन्दों के अधिक सन्निकट हैं / (4) अन्य प्रतियों में माणिक्य ग्रन्थ भण्डार, भीडर की कुछ प्रतियां और ऑरिएन्टल इन्स्टीटयूट, बड़ोदा की प्रतियां भी उल्लेखनीय हैं। ये पाठ की दृष्टि से उतनी शुद्ध नहीं हैं। गुजरात विद्या सभा, अहमदाबाद, भाण्डारकर इन्स्टीट्यूट, पूना, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी में भी इसकी प्रतियाँ सुरक्षित हैं। 4. जटमल वर्ग : इसकी अनेक प्रतियां मिलती हैं। कुछ में पाठान्तर और भाषान्तर भी हो गया है। ऐसी ही एक प्रति की नकल मुनि जिनविजयजी के
SR No.032833
Book TitleGora Badal Padmini Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemratna Kavi, Udaysinh Bhatnagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1997
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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