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________________ 96 गुणस्थान विवेचन 1. शंका - सासादन गुणस्थानवाला जीव मिथ्यात्व कर्म का उदय नहीं होने से मिथ्यादृष्टि नहीं है, समीचीन रुचि का अभाव होने से सम्यग्दृष्टि भी नहीं है, तथा इन दोनों को विषय करनेवाली सम्यग्मिथ्यात्वरूप रुचि का अभाव होने से सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी नहीं हैं। इनके अतिरिक्त और कोई चौथी दृष्टि है नहीं; क्योंकि समीचीन, असमीचीन और उभयरूप दृष्टि के आलम्बनभूत वस्तु के अतिरिक्त दूसरी कोई वस्तु पाई नहीं जाती है। इसलिये सासादन गुणस्थान असत्स्वरूप ही है। अर्थात् सासादन नाम का कोई स्वतन्त्र गुणस्थान नहीं मानना चाहिये ? समाधान - ऐसा नहीं है; क्योंकि सासादन गुणस्थान में विपरीत अभिप्राय रहता है; इसलिये उसे असदृष्टि ही समझना चाहिये। 2. शंका - यदि ऐसा है तो इसे मिथ्यादृष्टि ही कहना चाहिये, सासादन संज्ञा देना उचित नहीं है ? समाधान - नहीं, क्योंकि सम्यग्दर्शन और स्वरूपाचरण चारित्र का प्रतिबन्ध करनेवाले अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय से उत्पन्न हुआ विपरीताभिनिवेश दूसरे गुणस्थान में पाया जाता है; इसलिये द्वितीय गुणस्थानवी जीव मिथ्यादृष्टि है। किंतु मिथ्यात्वकर्म के उदय से उत्पन्न हुआ विपरीताभिनिवेश वहाँ नहीं पाया जाता है / इसलिये उसे मिथ्यादृष्टि नहीं कहते हैं; किन्तु सासादनसम्यग्दृष्टि कहते हैं। _____ 3. शंका - पूर्व के कथनानुसार जब वह मिथ्यादृष्टि ही है तो फिर उसे मिथ्यादृष्टि संज्ञा क्यों नहीं दी गई है ? समाधान - ऐसा नहीं है; क्योंकि सासादन गुणस्थान को स्वतन्त्र कहने से अनन्तानुबन्धी प्रकृतियों की द्विस्वभावता का कथन सिद्ध हो जाता है। विशेषार्थ - सासादन गुणस्थान को स्वतन्त्र मानने का फल जो अनन्तानुबन्धी की द्विस्वभावता बतलाई गई है, वह द्विस्वभावता दो प्रकार से हो सकती है। एक तो अनन्तानुबन्धी कषाय सम्यक्त्व और चारित्र इन दोनों की प्रतिबन्धक मानी गई है और यही उसकी द्विस्वभावता है। इसी कथन की पुष्टि यहाँ पर सासादन गुणस्थान को स्वतन्त्र मानकर
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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