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________________ 81 मिथ्यात्व गुणस्थान 15. प्रश्न : ऐसे द्रव्यलिंगी मुनिराज के साथ सच्चे श्रावक को कैसा व्यवहार रखना चाहिए ? उत्तर : यदि अट्ठाईस मूलगुणों का आचरण आगमानुकूल हो तो द्रव्यलिंगी मुनिराज के लिए क्षायिक सम्यग्दृष्टि तथा पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक नमस्कारादि विनय व्यवहार तथा आहारदान आदि क्रियायें हार्दिक परिणामों से करे; क्योंकि नमस्कार आदि व्यवहार है और मुनिराज का व्रत पालन भी व्यवहार है। सूक्ष्म अंतरंग परिणामों का पता लग भी नहीं सकता; क्योंकि वे तो केवलज्ञानगम्य ही होते हैं। व्यवहारी जनों के लिए द्रव्यलिंगी भी पूज्य हैं। (योगसार-प्राभृत अध्याय 5 श्लोक 246, मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ 283-284) आगमन - 1. प्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती भावलिंगी संत भी अनादिकालीन कुसंस्कारों के पुनः प्रगट होने पर विपरीत पुरुषार्थ से निज शुद्धात्मा का अवलंबन छूटने से तथा निमित्तरूप में यथायोग्य कर्मों का उदय आने से सीधे मिथ्यात्व गुणस्थान में आ सकते हैं। 2. पंचम गुणस्थानवर्ती विरताविरत श्रावक अथवा पंचम गुणस्थानवर्ती द्रव्यलिंगी मुनिराज भी अपने हीन पुरुषार्थरूप अपराध से तथा उसी समय निमित्तरूप में यथायोग्य कर्मों के उदय से सीधे मिथ्यात्व गुणस्थान में आ सकते हैं। 3. क्षायिक सम्यग्दृष्टि को छोड़कर अन्य दोनों - औपशमिक तथा क्षायोपशमिक अविरत सम्यग्दृष्टि जीव के जब श्रद्धा में विपरीतता आती है तथा उसी समय मिथ्यात्व का उदय आने पर वे जीव सीधे मिथ्यात्व गुणस्थान में आ सकते हैं। 4. मिश्र गुणस्थानवर्ती भी मिथ्यात्व में आ सकते हैं। 5. सासादन सम्यग्दृष्टि तो मिथ्यात्व गुणस्थान में आते ही हैं। 16. प्रश्न : मिथ्यात्व गुणस्थानवर्ती साधक किस साधना द्वारा अविरत सम्यक्त्व आदि उपरिम गुणस्थानों को प्राप्त करते हैं ? उत्तर : मिथ्यादृष्टि जीव स्व-पर भेदज्ञानपूर्वक अपने त्रिकाली निज शुद्धात्मा के आश्रयरूप महान अपूर्व पुरुषार्थ से दर्शनमोहादि कर्म का भी अभाव होने से सम्यग्दर्शनादि प्राप्त कर लेते हैं। इसप्रकार मिथ्यात्व गुणस्थानवर्ती साधक उपरिम गुणस्थानों को प्राप्त करते हैं।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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