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________________ 79 मिथ्यात्व गुणस्थान 5. कोई सादि मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिंगी मुनिराज, द्रव्यलिंगी श्रावक अथवा भद्र मिथ्यादृष्टि हो तो वे मिथ्यात्व गुणस्थान से तीसरे/मिश्र गुणस्थान में प्रवेश कर सकते हैं। 11. प्रश्न : आपने तीसरे गुणस्थान में प्रवेश करनेवाले के लिए सादि मिथ्यादृष्टि, यह विशेषण क्यों लगाया ? क्या कोई अनादि मिथ्यादृष्टि तीसरे गुणस्थान में प्रवेश नहीं करेगा ? उत्तर : अनादि मिथ्यादृष्टि के पास सम्यग्मिथ्यात्व दर्शनमोह कर्म की सत्ता ही नहीं है। अत: वह तीसरे गुणस्थान में प्रवेश नहीं कर सकता। सम्यक्त्व की उत्पत्ति के प्रथम समय में मिथ्यात्व के तीन टुकड़े होने का नियम है। 12. प्रश्न : मिथ्यात्व गुणस्थान से कोई जीव सातवें में, कोई पाँचवें में, कोई चौथे में अथवा कोई तीसरे गुणस्थान में गमन करते हैं, ऐसा भेद क्यों/कैसे होता है ? ___ उत्तर : प्रत्येक जीव की अपनी-अपनी पात्रता भिन्न-भिन्न होती है, त्रिकाली शुद्धात्मा का आश्रय करनेरूप पुरुषार्थ हीनाधिक होता है, उदय में आनेवाले कर्म भी भिन्न-भिन्न ही होते हैं, भवितव्य भी स्वतंत्र होता है; कोई जीव किसी अन्य जीव के, पुद्गलादि के अथवा भगवान के भी अधीन नहीं है। इसलिए उनका गुणस्थान में गमनरूप कार्य भी स्वतंत्र रीति से पर्यायगत योग्यता के अनुसार होता रहता है। एक ही समवशरण अर्थात् धर्मसभा में देव, मनुष्य, तिर्यंच - तीन गति के जीव एक ही तीर्थंकर भगवान का उपदेश सुनते हैं; तथापि उन श्रोताओं में भी उनकी अपनी-अपनी पात्रता के अनुसार ही वे महाव्रतों या अणुव्रतों को ग्रहण करते हैं, सम्यग्दर्शन की प्राप्ति करते हैं तीसरे गुणस्थान के पात्र बनते हैं या अंतरंग में तत्त्व का विरोध करते हैं। इससे ही प्रत्येक द्रव्य, गुण और पर्याय की स्वतंत्रता सिद्ध होती है। 13. प्रश्न : द्रव्यलिंगी मुनिराजों के कितने भेद हैं ? उत्तर : द्रव्यलिंगी मुनिराजों के मुख्यता से तीन भेद होते हैं।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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