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________________ 77 मिथ्यात्व गुणस्थान 4. अनादि-अनंत काल - अभव्य जीव के मिथ्यात्व भाव का कभी नाश ही नहीं हो सकताः इसलिए अभव्यों की अपेक्षा मिथ्यात्व गुणस्थान का काल अनादि-अनंत है। अनादि-अनंत है / अनादि काल से भी भव्य जीवों को मिथ्यात्व गुणस्थान है और भव्यों से भी कभी संसार खाली नहीं होगा; इस अपेक्षा मिथ्यात्व का काल अनन्त कहना आगमसम्मत है। 10. प्रश्न : भव्यजीवों के मिथ्यात्व का काल अनंत कैसा ? उत्तर : आगम के कथनानुसार यह संसार कभी भव्यजीवों से रहित नहीं होता। अत: नाना भव्यजीवों की अपेक्षा मिथ्यात्व का काल अनादिअनंत सिद्ध होता है। दूसरी एक अपेक्षा यह भी है कि दूरानुदूर भव्य, अभव्य के समान ही होते हैं; उन्हें कभी मोक्ष या मोक्षमार्ग प्राप्त होता ही नहीं है। इसलिए भी मिथ्यात्व गुणस्थान का काल अनादि-अनंत सिद्ध होता है। 5. अनादि-सांत काल - एक भव्य जीव की अपेक्षा काल अनादिसांत है। इसका अर्थ - कोई भव्य जीव अनादि से मिथ्यात्व गुणस्थान में रहता है; इस अपेक्षा से भव्य जीव के मिथ्यात्व का काल अनादि हो गया। अब वह भव्य जीव जब अपने निज शुद्धात्मा का आश्रय करके सम्यक्त्वी होता है, तब उसके मिथ्यात्व का निश्चित ही नाश हो जाता है, इस अपेक्षा से भव्य जीव के मिथ्यात्व का काल सान्त हो गया। इस तरह एक भव्यजीव के मिथ्यात्व का काल अनादि-सान्त सिद्ध हो गया। 6. सादि-सांत काल - सूक्ष्मता से सोचा जाये तो प्रत्येक पर्याय का काल एक समय का ही होता है; इस अपेक्षा से मिथ्यात्व परिणाम समयसमय बदलता ही रहता है। इस दृष्टि से पर्याय अपेक्षा अर्थात् सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा मिथ्यात्व परिणाम का काल एक समय ही है, इसलिए मिथ्यात्व परिणाम सादि सान्त भी है। गमनागमन अपेक्षा विचार - गमन शब्द का अर्थ है जाना और आगमन शब्द का अर्थ है आना। जीव के एक गुणस्थान से दूसरे गुणस्थान में जाने-आने के अर्थ में
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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