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________________ गुणस्थान भूमिका करणानुयोग से लाभ 1. सूक्ष्म परमाणु आदि, अंतरित राम-रावणादि, दूरवर्ती सुमेरू पर्वतादि पदार्थ का ज्ञाता कोई अवश्य होना चाहिए; क्योंकि वे पदार्थ अनुमान ज्ञान के विषय हैं। अत: जगत में कोई न कोई सर्वज्ञ अवश्य है - ऐसा निर्णय होता है। 2. सर्वज्ञ भगवान द्वारा प्रतिपादित सूक्ष्म तथापि बुद्धिगम्य पदार्थों का ज्ञान होता है एवं क्रमबद्धपर्याय /क्रमनियमितपर्याय का निर्णय होता है। 3. करणानुयोग के अभ्यास से कषाय की मंदता होती है एवं ज्ञान में निर्मलता आती है। 4. जीवपरिणाम और कर्मबंधादि के निमित्त-नैमित्तिक संबंध का यथार्थ ज्ञान होता है और कर्ता-कर्म संबंधी भ्रांति का नाश हो जाता है। 5. भूमिका के अनुसार होनेवाले परिणामों का और तदनुकूल शुभाशुभ आचरण का विवेक जागृत होता है। 6. यथापदवी निमित्तरूप होनेवाले कर्मों के उपशमादि का सत्य निर्णय हो जाता है। कर्मों की बंध, सत्ता, उदय आदि दस अवस्थाओं का ज्ञान होता है। 7. भविष्य में होनेवाली अशुद्धता तथा अनिष्ट पर्यायों से बचने की प्रेरणा मिलती है। 8. केवलज्ञानगम्य सूक्ष्म तथा आश्चर्यकारक विषयों का ज्ञान होने से सर्वज्ञ भगवान और सर्वज्ञस्वभावी अपने आत्मा की महिमा आती है। 9. करणानुयोग में वर्णित चौदह गुणस्थानों; चौदह मार्गणा, चौदह, सत्तावन, अट्ठाणवे और चार सौ छह जीवसमासों,११९.५ करोड़ों कुल, 84 लाख योनि आदि का ज्ञान होने से जीवदया का भाव उत्पन्न होता है। चौंसठ अवगाहना स्थान आदि अनेकानेक अनुपम विषयों के विशेष ज्ञान से आनंद होता है। 10. आत्मस्वरूप को भूलकर मिथ्यात्व, अज्ञान एवं कषायों के अधीन होने से द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावरूप संसार में जीव दु:ख
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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