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________________ 50 गुणस्थान विवेचन 105. प्रश्न : क्या कर्मों के उपशम, क्षय, क्षयोपशम के निमित्त से शुद्ध भाव होते हैं अथवा आत्मा के शुद्ध भावों से कर्मों के क्षयादि होते हैं ? उत्तर : दोनों कथन अपनी-अपनी अपेक्षा से सही हैं। पहला कथन कर्म की ओर से किया गया है तथा दूसरा कथन जीव के भावों की ओर से किया गया है। * कर्म के उपशमादि कार्य और जीव के औपशमिकादिक भाव एक ही समय में होते हैं; इसलिए दोनों कथनों का भाव एक ही है। * वास्तविक देखा जाय तो पुद्गल कर्मों में उत्पाद-व्यय पुद्गल के उपादान से होता है और आत्म-परिणामों में उत्पाद-व्यय आत्मरूप उपादान से होता है। दोनों कथन अपनी-अपनी अपेक्षा से सही हैं। * अपराध मात्र जीव का है, पुद्गल अर्थात् कर्म का नहीं। अपराध का अभाव भी जीव ही करता है। इसलिए जीव को ही उपदेश दिया जाता है। 106. प्रश्न : विग्रहगति में कितने गुणस्थान होते हैं ? उत्तर : प्रथम, द्वितीय एवं चतुर्थ गुणस्थान होते हैं। 107. प्रश्न : कौन से गुणस्थान में मृत्यु नहीं होती ? उत्तर : तीसरे, बारहवें एवं तेरहवें गुणस्थान में मृत्यु नहीं होती। कहा भी है - मिश्र, क्षीण, सजोग तीन में मरन न पावै। * क्षपक श्रेणी के किसी भी गुणस्थान में मरण नहीं होता। * उपशम श्रेणी के आठवें गुणस्थान के प्रथम भाग में भी मरण नहीं होता। * पाँचवें गुणस्थान से ग्यारहवें गुणस्थान पर्यंत के सर्व गुणस्थानों में जीव का मरण तो हो सकता है; लेकिन पाँचवें से ग्यारहवें गुणस्थान पर्यंत के गुणस्थानों के परिणामों को साथ लेकर विग्रह-गति में नहीं जाता। मरण होते ही विग्रहगति के प्रथम समय में चौथा गुणस्थान हो जाता है। 108. प्रश्न : संसार में किन-किन गुणस्थानों का विरह नहीं होता? उत्तर : पहला, चौथा, पाँचवाँ, छठवाँ, सातवाँ और तेरहवाँ इन गुणस्थानों का संसार में कभी भी विरह नहीं होता अर्थात् इन गुणस्थानों में जीव सदा विद्यमान रहते ही हैं।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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