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________________ 37 महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 37. प्रश्न : मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : सर्वज्ञ प्रणीत मार्ग से विमुख होकर तत्त्वार्थश्रद्धान में निरुत्सुक, हिताहित विचार करने में असमर्थ, मिथ्यात्व अर्थात् विपरीत मान्यतारूप परिणाम में निमित्त होनेवाले कर्म को मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय कर्म कहते हैं। 38. प्रश्न : सम्यग्मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : प्रक्षालित क्षीणाक्षीण मदशक्तिवाले कोदों के समान मिश्र श्रद्धान में निमित्त होनेवाले कर्म को सम्यग्मिथ्यात्व अर्थात् मिश्र दर्शनमोहनीय कर्म कहते हैं। 39. प्रश्न : सम्यक्प्रकृति दर्शनमोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में चल, मल, अगाढ़ दोषों के उत्पन्न होने में निमित्त होनेवाले कर्म को सम्यक्प्रकृति दर्शनमोहनीय कर्म कहते हैं। 40. प्रश्न : चारित्रमोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? / उत्तर : सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक राग-द्वेष की निवृत्तिमय आत्मस्थिरतारूप चारित्र की अप्रगटता में निमित्त होनेवाले कर्म को चारित्रमोहनीय कर्म कहते हैं। 41. प्रश्न : चारित्रमोहनीय कर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो भेद हैं - 1. कषाय और 2. नोकषाय। कषाय के सोलह भेद हैं - अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ; अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ; प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ; संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ / नोकषाय के नौ भेद हैं - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद। (ये 9 नोकषायें अनंतानुबंधी आदि चार भेदरूप भी होती हैं अर्थात् इनका उदय उन क्रोधादि के साथ यथासम्भव होता है। खुलासा के लिए भावदीपिका कषायभाव अंतराधिकार पढ़ें।) 42. प्रश्न : कषाय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : अमर्याद/विस्तृत संसाररूपी कर्मक्षेत्र को जोतकर आत्मस्वभाव से विपरीत लौकिक सुख और दुःख आदि अनेक प्रकार के धान्य के उत्पादक जीव के विकारी परिणामों को कषाय कहते हैं। * आत्मा को दु:खी करनेवाले, आकुलित करनेवाले, कसनेवाले
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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