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________________ 238 गुणस्थान विवेचन अनादि भूतकालीन सर्व पदार्थों को और भविष्यकालीन अनंतानंत सर्व पदार्थों को भी अर्थात् सर्व द्रव्य-गुण-पर्यायों को युगपत् एक ही समय में प्रत्यक्ष एवं स्पष्ट जानता है। ____ अनंत ज्ञान, दर्शन, सुख (सम्यक्त्व + चारित्र) वीर्य को अनंतचतुष्टय कहते हैं। दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य को पाँचलब्धि कहते हैं। इस तरह चतुष्टय और पंचलब्धि मिलकर क्षायिक नवलब्धि हो जाते हैं। इन केवलज्ञानादि नवलब्धि सहित तेरहवें गुणस्थानवर्ती सयोगकेवली होते हैं। इन्हें ही सकल परमात्मा कहते हैं। इन ही अरहंत तीर्थंकर परमात्मा की प्रतिमायें जिनमंदिर में विराजमान की जाती हैं; जो सबको पूज्य होती हैं। नाम अपेक्षा विचार - सयोगकेवली परमात्मा के ही अरिहंत, अरहंत, अरुहंत, केवली, परमात्मा, सकल परमात्मा, सयोगीजिन, परमज्योति, सर्वज्ञ, जिनेन्द्रदेव, जीवनमुक्त, आप्त आदि एक हजार आठ नाम कहे गये हैं। 1. मिथ्यात्व और क्रोधादि विभाव भावरूपी शत्रुओं को (अरि = शत्रु, हंत = नष्ट करनेवाले) जो नष्ट करते हैं, उन्हें अरिहंत कहते हैं। 2. जो सर्व जीवों से पूजनीय एवं आदर्श हैं, उन्हें अरहंत कहते हैं। आचार्य कुंदकुंद ने अपने ग्रंथों में मुख्य रीति से अरहंत शब्द का प्रयोग किया है। 3. जिनका पुनः जन्मरूप से उत्पन्न होना नष्ट हो गया है, उन्हें अरुहंत कहते हैं। 4. जो जिनेन्द्र भगवान योग सहित हैं; उन्हें सयोगीजिन कहते हैं। 5. जो परमात्मा होने पर भी कल अर्थात् शरीर सहित हैं, उन्हें सकल परमात्मा कहते हैं। 6. जो जीव केवलज्ञान सहित हैं, उन्हें केवली कहते हैं। 7. केवलज्ञान की मुख्यता से ही अरहंत को परमज्योति आदि कहते हैं। सम्यक्त्व अपेक्षा विचार - तेरहवें गुणस्थान में क्षायिक सम्यक्त्व ही रहता है; तथापि सयोगकेवली
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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