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________________ सम्यग्मिथ्यात्व (मिश्र) गुणस्थान कारण-कार्य संबंध तो है ही नहीं। नियम ऐसा जरूर है कि जिस-जिस जीव की श्रद्धा में सम्यक्-मिथ्यापना आता है, उसे सम्यग्मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय कर्म का उदय होता है। ___जीव के परिणाम में कर्म का उदय निमित्त मात्र है, कर्म जीव के परिणाम को करते-कराते हैं - ऐसा बिल्कुल नहीं है। यदि कर्म जीव के परिणाम को कराते हो तो उन्हें बलवान कहना संभव ही हो; लेकिन कर्म में ऐसी कुछ शक्ति ही नहीं है। अत: कर्म बलवान नहीं है, जीव ही अपने अच्छे-बरे परिणामों का कर्ता है। 28. “प्रश्न : एक जीव में एक साथ सम्यक् और मिथ्यारूप दृष्टि संभव नहीं है; क्योंकि इन दोनों दृष्टियों का एक जीव में एक साथ रहने में विरोध आता है। ये दोनों दृष्टियाँ एक जीव में क्रमशः रहती हैं; अत: इनका सम्यक्त्व और मिथ्यादृष्टि नामक गुणस्थानों में अन्तर्भाव हो जायेगा। इसलिए सम्यग्मिथ्यादृष्टि नामक तीसरा गुणस्थान नहीं बनता। उत्तर : नहीं, ऐसा नहीं है। समीचीन और असमीचीनरूप मिश्र श्रद्धा एक साथ रह सकती है - ऐसी मिश्र श्रद्धावाला जीव सम्यग्मिथ्यात्वी है। आत्मा अनेक धर्मात्मक है; इसलिए आत्मा में अनेक धर्मों का सहानवस्थान लक्षणरूप विरोध असिद्ध है अर्थात् एक साथ अनेक धर्मों के रहने में कोई बाधा नहीं आती। यदि कहा जाय की आत्मा अनेक धर्मात्मक है, यह बात ही असिद्ध है, सो भी कहना ठीक नहीं है; क्योंकि अनेकान्त के बिना उसके अर्थक्रियाकारीपना नहीं बन सकता। 29. प्रश्न : जिन धर्मों का एक आत्मा में एक साथ रहने में विरोध नहीं है, वे रहें; परन्तु सम्पूर्ण धर्म तो एकसाथ आत्मा में नहीं रह सकते ? उत्तर : ऐसा कौन कहता है कि परस्पर विरोधी और अविरोधी समस्त धर्मों का एक साथ एक आत्मा में रहना संभव है ? यदि संपूर्ण धर्मों का एक साथ रहना मान लिया जाये तो परस्पर विरुद्ध चैतन्य-अचैतन्य, भव्यत्व-अभव्यत्व आदि धर्मों का एक साथ एक आत्मा में रहने का प्रसंग आ जायेगा।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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