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________________ आहार को ग्रहण करता है, वह पच जाता है / इस से क्रमशः शरीरवृद्धि होती रहती है / (5) भाषावर्गणा के पुद्गलों से 'भाषा' यानी शब्द- रचना का निर्माण होता है / और, (6) 'श्वासोच्छवास वर्गणा' में से जीव श्वासोच्छवास रूप पुद्गलों को ग्रहण करता है / ये पुद्गल शब्द से भी सूक्ष्म होते हैं / 14 राजलोक में व्याप्त हैं / इसीलिए वायुविहीन (Vaccum) बिजली के बल्ब में ये होने से अग्निकाय के जीव उन्हें ग्रहण कर ही जीवित रहते हैं | ध्यान रहे कि हवा तो वायुकाय जीवों का शरीर है / वह बड़े औदारिक (शरीर) पुद्गल से बना हैं / जब कि श्वासोच्छवास के पुद्गल तो इनकी अपेक्षा अत्यन्त सूक्ष्म हैं / हमारे लिए भोजन और पानी के समान चालु वायु की भी आवश्यकता रहती है, किन्तु ऐसी आवश्यकता सभी जीवो को नहीं होती / जैसे कि मछली और मगर को इसकी जरूरत नहीं / ___ (7) जैसे हमारे बोलने के लिए 'भाषा-वर्गणा' के पुद्गल काम आते हैं वैसे विचार करने के लिए 'मनोवर्गणा' के पुद्गल काम आते हैं | नए-नए शब्दों के उच्चारण के समान नए-नए विचारों के लिए भी नये नये मनोवर्गणा के पुद्गल ग्रहण किए जाते हैं / इन्हें मन के रूप में परिणाम कर जब छोडे जाते है तब विचार स्फुरित होते
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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