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________________ होनेवाला आत्मा का एक mould- परिणाम है / जैसे चित्रकला में गूंद आदि चिकने पदार्थ रंग की स्थिरता को दृढ बनाते हैं, वैसे लेश्या कर्मबन्ध की अवस्था को दृढ बनाती है, उसे दीर्घ करती है | अशुभ लेश्या के फल में दुःख की अधिकता होती है, और शुभ लेश्या के फल में सुख की अधिकता होती है / लेश्या के छ: भेदों को समझने के क्तलिए एक दृष्टान्त है, छः मनुष्य रास्ता भूल जाने के कारण एक सघन वन में पहुँच गए / वहाँ सब को भूख लगी / उन्हें वहां जामुन का एक वृक्ष दृष्टिगोचर हुआ / उसे देखकर उन छः पुरुषों ने अपने अपने विचार व्यक्त किए / ___ पहला कहता हैं :- पेड़ को मूल से उखाडकर नीचे गिरादों फिर जामुन खाओ', - इसकी कृष्ण लेश्या / दूसरा कहता है :- 'पेड़ नहीं, बड़ी शाखाएं गिराकर जामुन खाओ', - इसकी नील लेश्या / तीसरे ने कहा :- 'मात्र जामुनवाली शाखा तोड़ लो, और जामुन खाओ,' -इसकी कापोतलेश्या / ___ चौथा कहता है :- 'शाखा नहीं किन्तु जामुन के मात्र गुच्छे तोडकर फ़ल खाओ,' - इसकी तेजोलेश्या / पांचवाँ कहता है :- 'खाली जामुन ही तोडकर खाओ' इसकी पद्मलेश्या /
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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