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________________ (11) 'आत्मा नहीं है' इस कथन से ही प्रमाणित होता है कि 'आत्मा है / ' जो वस्तु कहीं विद्यमान हो, उसी का निषेध किया जा सकता है / जड को अजीव कहते हैं / यदि जीव जैसी वस्तु का अस्तित्व ही न हो, तो अजीव क्या है? जगत् में खरोखर ब्राह्मण हैं, जैन हैं, तभी कहा जा सकता हैं कि अमुक आदमी अब्राह्मण हैं, अमुक अजैन है / (12) शरीर को देह, काया, कलेवर भी कहा जाता है / ये सब शरीर के पर्यायार्थक अथवा समानार्थक शब्द हैं / उसी प्रकार जीव के पर्यायशब्द आत्मा, चेतन, ज्ञानवान आदि हैं / भिन्न भिन्न पर्यायशब्द विद्यमान भिन्न-भिन्न पदार्थ के ही होते हैं / इससे भी अलग आत्मद्रव्य सिद्ध होता है / (13) किसी को पूर्वभव का स्मरण होता है / यह समस्त स्मरण उसे अपने अनुभव जैसा ही प्रतीत होता है / यह तभी संभव है जब आत्मा शरीर से अन्न द्रव्य हो, स्वतन्त्र द्रव्य हो और वही आत्मा पूर्व जन्म के शरीर में से इस जन्म में आई हो / पूर्व शरीर द्वारा किए गए अनुभव पूर्व शरीर के नाश के साथ ही यदि नष्ट हो गए तो उनका स्मरण इस जन्म में कैसे संभव है? क्या ऐसा हो सकता है कि किसी वस्तु का अनुभव तो कोई करे और उसका स्मरण (अनुभूत का स्मरण) कोई दूसरा करें? पिता द्वारा विदेश में किए गए अनुभवों का स्मरण यहां पुत्र नहीं कर सकता /
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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