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________________ मोक्षमार्ग की दृष्टि से देखें तो जीवन में पहले सम्यग्दर्शन स्वरूप मोक्षमार्ग लाने के लिए जीवन में मार्गानुसारी गुणों का अभ्यास जरूरी है / एवं सम्यक्त्व की करणी में जिनपूजा, गुरुभक्ति, जीवदया, व्रतनियम, जिनवाणी-श्रवण आदि का उद्यम करना जरूरी है / इससे सम्यग् दर्शन आता है / आगे बढ़कर सम्यक् चारित्र का पुरुषार्थ करना होता है / चारित्र की पराकाष्ठा में वीतरागता, केवलज्ञान व मोक्ष होता है / (3) जीवन में धर्म की क्या जरूर है? जीवन में सुख की जितनी जरूर है उससे तो कई गुनी अधिक धर्म की जरूर है, (1) क्यों कि सभी शास्त्र 'सुखं धर्मात्, दुःखं पापात्' अर्थात् 'धर्म से सुख, और पाप से दुःख'- यह सनातन सत्य बताते हैं / तात्पर्य, जब सुख धर्म से ही मिलता है, व हमें जब सुख की ही कामना है, तब सहज है कि हमें धर्म अति जरूरी है / (2) व्यवहार में भी हम दूसरों के पास से यही अपेक्षा रखते हैं कि "वे हमें नहीं मारें, यानी हमारी हिंसा न करें, हमारे सामने झूठ न बोलें, हमारी वस्तु की चोरी न करें, हमारी स्त्री के सामने नहीं देखें व हमारे परिग्रह में रुकावट न करें / " यह दूसरे में जो अहिंसा, जूठ त्याग आदि की हमें अपेक्षा है, ये क्या है,? ये 'अहिंसादि धर्म' की ही अपेक्षा है | अगर दूसरों के पास से हम 5 350
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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