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________________ सेवन यह जीव की बिडम्बना है / (3) "उग्र विषय-लगन से संसार के हल्के भवों में भटकना पड़ता है / वहाँ तो कभी गंदे विषयों की भी लगन रहती है, जैसे सुवर को विष्ठा की, कौए को कफ लीट की !", विषयों का इस प्रकार चिंतन करने से उनके प्रति घृणानफरत-अभाव उत्पन्न होता है / वैसे, जिस संसार में बिडम्बना है, उस संसार से भी सुज्ञ जीव उब जाता है / यहीं वैराग्य है / ऐसे वैराग्य के साथ तीर्थंकर कथित दान-शील-तप-भावना व सम्यग्दर्शन ज्ञान-चारित्रमय धर्म में ही पुरुषार्थ लगाए तब जीव का मोक्ष होता है / कार्यमात्र में 5 कारण जरूरी इतना ध्यान में रहे कि जगत में सामान्य रूप से कोई भी कार्य भवितव्यता, स्वभाव, काल, कर्म व पुरुषार्थ -इन पांच कारणों से होता है / (1) भवितव्यताः- इसने हमें अनादि सूक्ष्म अनंतकाय में से बाहर निकाला / क्यों कि वहां तो, यहां से एक जीव मुक्त होने पर 'कौन जीव बाहर निकले?' इस की व्यवस्था बाकी के चार कारण नहीं कर सकते हैं / यह तो भवितव्यता ही व्यवस्था करती है / जिसकी भवितव्यता बलवान होती है वह जीव अनादि निगोद से बाहर आता है / (2) बाद 'भव्यत्व' स्वभाव ही जीव को शुद्ध धर्म की ओर खींच लाता है / अभव्य को मोक्ष ही नहीं, तो शुद्ध धर्म भी नहीं / (3) अचरमावर्त काल की समाप्ति जीव को चरमावर्त काल यानी मोक्ष 033
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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