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________________ नीचे एकेन्द्रिय जाति तक में गिरता भी है / इसीलिए शास्त्र बताता है कि अनंतानंत काल में अपने जीव ने चारो गतियों में अनंतचक्र काटे है / इस में ऊँचे भी चढ़ा व नीचे भी गिरा / प्र०- एकेन्द्रियता से ऊंचे ऊंचे आने में पुण्य कारण है / किन्तु वहाँ धर्म के बिना पुण्य कैसे निष्पन्न होता है? उ०- पुण्य जैसे धर्म से पैदा होता है वैसे कर्मो का बहुत मार खाने से (अर्थात् अकाम-निर्जरा से) भी पैदा होता है / वहाँ कर्मलघुता होने से पुण्ययोग्य कुछ 'शुभ' आत्मा में जाग्रत होता है / इससे पुण्य निपजता है / इस प्रकार के पुण्य से जीव ऊपर आता है, और पापाचार से नीची गति में गिर पड़ता है / (2) मोक्ष कैसे होता है? प्र०- तब क्या अपने जीव को इस भवचक्र में इस प्रकार भटकते ही रहना होता है? उ०- नहीं, जिन कारणों से संसार निपजता है, उनको रोककर जीव उनसे विपरीत कारण का सेवन करे, तो संसार का अन्त व मोक्ष निष्पन्न हो जाए यह बिलकुल युक्तियुक्त है / यह इस प्रकार, मिथ्यात्वादि कारणों से जीव का भवभ्रमण होता है; व उनका त्याग कर सम्यगदर्शनादि उपायों के सेवन से भव से मुक्ति होती है / / 0 31
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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