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________________ अर्थात् ऐश्वर्यसम्पन्न / यह अर्थ देवेन्द्र में ही घटित होता है / इन्द्र प्रभु को मेरूशिखर पर ले जाता है / 'इन्द्र' का यह ज्ञान या व्यवहार समभिरूढ नय का हैं / अलबत्ता इन्द्र के सिंहासन पर बैठी हुई इन्दन = ऐश्वर्य संपन्न अवस्था - वाला अभी नहीं है किन्तु पहले ऐसी अवस्थवाला था ही, वही व्यक्ति प्रभु को महाशिखर पर ले जाता (7) एवंभूत नय :- यह नय और अधिक गहनता में प्रवेश करता है / इसके अनुसार वस्तु को उसके वाचक शब्द में तभी सम्बोधित करना चाहिए जब शब्द का अर्थ वर्तमान में उसमें घटित हो रहा हो, नहीं कि वस्तु में शब्दार्थ पहले घटित होता था, इतने मात्र से अतीतकाल में अर्थ घटित होता था / यह आधार इस नय को स्वीकार्य नहीं / जैसेकि 'इन्द्र चक्रवर्ती की अपेक्षा से भी अधिक वैभवशाली सम्राट है / ' इस में इन्द्र का ज्ञान एवंभूत नय के अनुसार हो रहा है / क्योंकि देवसभा में सिंहासन पर इन्द्रत्व के, एश्वर्य के साथ विराजमान ही देवराज को इन्द्र के रूप में समझा जा रहा है / इसी प्रकार रसोई के समय 'घी का डब्बा लाओ' (अर्थात् घी से भरा हुआ डब्बा लाओ) यह बात जो कही जाती है यह एवंभूत नय की अपेक्षा से / क्योंकि वहां तात्पर्य घी से भरे हुए ही डब्बे से है, घी के खाली डब्बे से नहीं / (पहले धी डाला जाता था, किन्तु अब खाली है ऐसे घड़े का बोध यदि इस प्रकार कराया जाय कि 'यह घी का घड़ा छोटा है', तो यह समभिरूढ नय का ज्ञान 2 3280
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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