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________________ अर्थः- '68 तीर्थों में यात्रा करने से जो फल मिलता है' वह फल आदिनाथ-देव का स्मरण करने से भी प्राप्त होता है / " (श्री ऋषभदेव का दूसरा नाम आदिनाथ भी है / ) [4] "अर्हन्ता चित्पुरो दर्धेऽशेव देवावर्तते" / / 4 / / [अ 4-4-32-5 ऋग्वेद अर्थः-"जैसे सूर्य किरणों को धारण करता है, वैसे / अरिहंत ज्ञान की राशि धारण करते हैं / " [5] "मरुदेवी च नाभिश्च भरते कुलसत्तमाः / अष्टमो मरुदेव्यां तु, नाभिजात उरुक्रमः" / / 5 / / दर्शयन् वर्त्म वीराणां, सुरासुरनमस्कृतः / / नीतित्रयाणां कर्ता यो, युगादौ प्रथमो जिनः" / / 6 / / (मनुस्मृति) अर्थः- "भरतक्षेत्र में छठे कुलकर मरुदेव और सातवें नाभि हुए / आठवाँ कुलकर नाभि द्वारा मरुदेवी से उत्पन्न विशाल चरणवाला ऋषभ हुआ / वह वीर पुरुषों का मार्गदर्शक, सुरासुर द्वारा प्रणत तथा तीन नीतियों का उपदेशक, युग के प्रारम्भ में जिन हुआ / " A 230
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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