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________________ 12. शिक्षाव्रत :- अतिथि संविभाग : 'अतिथि' अर्थात् साधु-साध्वी, को 'संविभाग' दान देने का व्रत / प्रचलित प्रवृत्ति के अनुसार चउविहार अथवा तिविहार उपवास के साथ दिन-रात का पौषधव्रत करके पारणे में एकासना करके मुनि को आहार-पानी वहोराने (देने) के बाद भोजन करना चाहिए / यदि गाँव में साधु-साध्वी न मिले तो साधर्मिक की भक्ति करने के बाद आहार लेना यह अतिथि संविभाग व्रत है / यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि “एक वर्ष में इतने अतिथि संविभाग करूंगा' इसके सम्यक पालन के लिए मुनि को दान देने मैं छल-कपट न हों, भिक्षा या गोचरी के समय की उपेक्षा न हो आदि बातों का ध्यान रखना चाहिए / इन बारह व्रतो को पूरे रूप में अथवा कम या एक व्रत तक भी ग्रहण किया जा सकता है / अभ्यासार्थ कुछ अपवाद रखकर भी धारण किया जा सकता है / कुछ समय के लिए भी ये व्रत लिये जा सकते है / (31) भाव - श्रावक भाव के बिना बाहर से अर्थात् दिखावे-कपट-लालच आदि के कारण जो श्रावकपन की क्रिया करता है, उसे 'द्रव्य-श्रावक' कहते हैं / और जो आंतरिक शुद्ध भाव से श्रावकपन की क्रिया करता 22698
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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