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________________ (v) अनादि काल से कर्मो से बद्ध होती हुई आत्मा का मोक्ष भी हो सकता है / मूलरुप से भूमि में स्वर्णमिश्रित मिट्टी से स्वर्ण सर्वथा मुक्त होता हुआ दिखाई देता है | कर्म तथा देहादि का नितांतआत्यंतिक वियोग होने पर आत्मा का मोक्ष हुआ माना जाता है / ___ (vi) इस मोक्ष के उपाय भी हैं / जिन कारणो से कर्मों का संयोग होता है, उनके विपरीत कारणो से कर्म का वियोग होता है, यह सहज है / राग-द्वेष, अज्ञान आदि कर्मबंधन के कारणो को रोककर इन के विरोधी वैराग्य, त्याग, उपशम, सम्यग् ज्ञानादि का सेवन हो, तो पराकाष्ठा में सर्व कर्मक्षय हो अंत में संसार में से हमेश के लिए जरुर मोक्ष होता है / 8. प्रभावना- जनता में जैनशासन की प्रभावना करे वैसी प्रवचनपटुता, धर्म-कथकता आदि आठ विशेषताओं से सम्यक्त्व निर्मल होता है / अतः यहाँ इन्हें भी 67 व्यवहारों में गिना गया है / ऐसी विशेषता वाले आठ है (आठ के प्रथमाक्षर-प्राककविनैवासित) (i) प्रावचनिक :- (प्रवचन-द्वादशांगी) अपने अपने समय में उपलब्ध सब आगमो का प्रखर ज्ञाता / यह प्रभावक होता है / ___(ii) धर्मकथा :- आक्षेपिणी, विक्षेपिणी, संवेगजननी और निर्वेदकारिणी धर्मकथा में कुशल / ___(iii) कवि :- चमत्कारिक विशिष्ट उत्प्रेक्षादि युक्त काव्य की शीघ्र 2 2560
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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