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________________ की आवश्यकता महसुस हुई, तब कई भारी कर्मो से भरे अपने जीव को तप की कोई जरुरत नही है? तप से सत्त्व बढ़ता है, सत्त्व से कई साधनाएं व सद् गुण बढ़ते रहते है / जगच्चंद्रसूरिजी महाराज ने 12 वर्ष तक आयंबिल तप चलाया / सत्त्व इतना बढ़ा कि उन्होंने दिगंबरों के साथ 33 बाद में विजय पा ली / चित्तौढ के राणा ने उन्हों 'तपा' बीरुद प्रदान किया / तब से बडगच्छ का नाम 'तपागच्छ' चला / तप की महिमा अनंत है / जिनशासन बताता है : "ते भव मुक्ति जाणे जिनवर, त्रण-चउ ज्ञाने नियमा / तो पण तप आचरण नवि मूके अनंतगुणो तपमहिमा / " अर्थात् तीर्थंकर भगवान उसी भव में निश्चित मोक्षगमन मालुम होते हुए भी तप का आचरण नही छोडते हैं क्योंकि अनंतगुणो तपमहिमा / भावना-धर्म का महत्त्व - भावनाधर्म में चित्त में शुभ भावनाओं का चिंतन करना आता है / जैसे कि अनित्यता, अशरणता, संसार... आदि 12 विषय पर चिंतन किया जाए / उन्हें द्वादश अनुप्रेक्षा भी कहते हैं / एवं मैत्री आदि 4 भावनाएँ, व ज्ञानादि 4 भावनाएँ की जाए / अनित्यादि 12 भावना- (अनुप्रेक्षा) - 2 2458
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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