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________________ या तो तप से क्षय किए बिना, नहीं हो सकता है / इस हिसाब से सोचना चाहिए कि जनम-जनम के पापों का तप से नाश करने के लिए यहाँ तपस्या करने का कितना बड़ा सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ है / तप में अल्प कष्ट से महान फल पा सकते हैं / तप से पाप का विनाश तो होता ही है, साथ में पुण्योपार्जन भी बहुत होता रहता है / वणिकपुत्र 'नंदीषेण' निर्धन एवं सेवाभावी होने पर भी अपमानित हुआ, चारित्र लेकर साधु बना, व छट्ठ के पारणे छट्ठ के बाह्यतप में और साधु-वैयावच्च के अभ्यान्तर तप में तत्पर बना / इससे वह अगले जन्म में कृष्ण वासुदेव का पिता वसुदेव हुआ / वह तपवैयावच्च से इतना सौभाग्य का उदय ले आया था कि नगर का नारी-समूह उसे देखने के वास्ते सदा साथ लालायित रहता था / वैताढ्य पर्वत पर गया तो हजारों विद्याधर कन्याओं के साथ पाणिग्रहण कर घर ले आया / तप महामंगल है, तप महान विघ्न-विनाशक है / शाम्ब, पालक, आदि राजकुमारों ने शराब पीकर द्वैपायन ऋषि की हसी-मजाक उडाई, तब द्वैपायन ऋषि ने शाप दिया था कि द्वारिका को जला दूंगा / तपस्वी द्वैपायन मृत्यु के बाद देव बना व द्वारिका को प्रज्वलित करने के लिए सन्नद्ध हो गया / किन्तु कृष्ण की घोषणा से द्वारिकावासियों ने जिनश्वरदेव की भक्ति के साथ ही आयंबिल 0 242
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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