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________________ मोक्षफल प्राप्त हो सके / किन्तु बीजारोपण के पहले आत्म-क्षेत्र को मुलायम बनना चाहिए, और वह होता है मार्गानुसारी के 35 गुणों के जीवन से / कृषि से मुलायम बने क्षेत्र में ही बीजारोपण उपयोगी यानी सफल बनता है, अन्यथा बीज का धरती के साथ मिलान यानी एकमेकभाव ही नहीं बनेगा / फिर वहाँ फल कैसे बैठे? ये 35 गुण ऐसे है कि वे प्रारंभिक (आदि)धार्मिक को भी जरूरी है, एवं उंचे चढे हुए धार्मिक जैसे कि श्रावक साधु, तक को भी जरूरी है / अन्यथा मार्गानुसारी के एकाध गुण की भी कमी में विरोधी दोष के जरिये जीव का पतन होना संभवित है, उदाहरणार्थ, - महातपस्वी, महावैरागी नंदीषेण मुनि को 'अयोग्य देशकाल चर्या का त्याग' नाम के एक मार्गानुसारी गुण का भंग हुआ तो वे वेश्या के वहाँ ही बैठ गए / इसलिए कहा जाए कि मुनि को भी मार्गानुसारी के गुण पालना जरुरी है / मार्गानुसारी-जीवन - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक् - तप द्वारा पूरी-पूरी साधना का अर्थ है मोक्ष का मार्ग / उस मार्ग की ओर अग्रसर होनेवाला, उसका अनुसरण करनेवाला, उसे जीने के लिए सहाय रूप बननेवाला जीवन मार्गानुसारी जीवन कहलाता है / ___ शास्त्रों में मार्गानुसारी के 35 गुण बताए गये हैं / इन गुणों को सरलता पूर्वक याद करने के लिए इन्हें हम यहाँ चार विभागों में विभक्त करते हैं:- जीवन में (1) करणीय 11 कर्तव्य, (2) त्याज्य 8 दोष, (3) अनुसरणीय 8 गुण (4) साधनीय 8 साधना / 22288
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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