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________________ पर 8 प्रकार के कर्म ये बादल है, उन से मूल प्रकाश दब कर 8 प्रकार की विकृतियाँ खड़ी होती है; जिन में अवान्तर कई विकृतियाँ होने से वे कई प्रकार की होती हैं / जीव-सूर्य जीव के 8 गुण / 8 कर्म-बादल | कर्म बादल से विकृति | (1) अनंत ज्ञान | ज्ञानावरण अज्ञान (2) अनंत दर्शन | दर्शनावरण / | अंधता, बधिरता, निद्रा आदि (3) वीतरागता / मोहनीय मिथ्यात्व, राग-द्वेष, क्रोधादि | कषाय, काम, हास्यादि नोकषाय. (4) अनंत वीर्यादि | अन्तराय कृपणता, पराधीनता, दरिद्रता, दुर्बलता (5) अनंत सुख | वेदनीय | शाता-अशाता (6) अजरामरता | आयुष्य जन्म-मृत्यु (7) अरुपता नामकर्म शरीर, इन्द्रियाँ, वर्णादि चार, त्रस-स्थावरपन, यश, अपयश, सौभाग्य दौर्भाग्यादि / | (8) अगुरुलघुता | गोत्रकर्म | उच्चकुल-नीचकुल R 1108
SR No.032824
Book TitleJain Dharm Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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