________________ (345) शिष्यक्षमाकट्याण // श्री // इतिश्रीथूलिजजजीनीसकाय संपूर्णा // // अथ श्रीदेवचंद्रजीकृतअष्टप्रवचनमातानी . सझाय लिख्यते .. // दोहा // सुकृतकट्पतरुश्रेणिनी / वरउत्तरकुरुनोमि / अध्यातम रस शशिकला / श्रीजिनवाणी नौमि // 1 // दीपचंदपाठकसुगुरु / पदवंदीअवदात / सारश्रमणगुणनावना गाशें प्रवचनमात // 2 // जननीपुत्र जिमशुनकारी / तिम ए पवयणमाय / चारित्रगुणगणवर्धिनी / निर्मल शिव सुखदाय // 3 // नावअयोगी करणरुचि / मुनिवरगुप्ति धरंत / यदिगुप्तिजो न रहिशके / तो समितिविचरंत // 4 // गुप्तिएक संबरमयी। औरंगिक परिणाम // संवर निर्जर समितिथी / अपवादे गुणधाम // 5 // अव्ये व्यत चरणता, नावे नाव चरित्त // नावदृष्टिव्यतक्रिया / करतां शिवसंपत्त // ६॥आतमगुएप्राग्नावथी। जेसाधकपरिणाम / समिति गुप्ति ते जिनकहे। साध्यसिद्धिशिवगम // 7 // निश्चयकरणरुचियश् / समिति गुप्तिधरसाधि // परमअहिंसकनावश्री / आराधेनिरुपाधि // // परममहोदय साधवा / जेहथया उजमाल // श्रमणनि कुमाहण यति / गाउं तस गुणमाल // ए॥ // अथ प्रथमा समिति सझाय लिख्यते // ... प्रथम गोवालतणे नवेंजी // एदेशी // प्रथमअहिंसक व्रततणीजी / उत्तमनावनाएह // संवरकारणउपदिशी जी / समतारसगुणगेह // मुनीश्वर / र्यासमितिसंचार // आश्रवकरत