________________ (337) विण श्रेणिकराजग्रहधणी / शेपदवी अरिहंततणी // २ए॥ समकितपाले जेनरनार / वली न यावे तेसंसार / एम जाणी सम कितश्रादरो। सिधिरमणी जेम लीलावरो // 30 // इति श्रीसमकितनी सकाय संपूर्णा // // अथ सद्गुरुपरीक्षारूप श्रीसुगुरुपचीशी लिख्यते // // सुगुरु पीगणो एणे आचारें / समकित जेह-शुजी // // ए आंकणी // कणीकरणी एकजसरखी / अहर्निशधर्म विलुजी // सु॥१॥ निरतिचार महाव्रतपाले / टाले सगलादोषजी / चारित्रशुं लयबीनरहेनित्य / चित्तमां सदासं. तोषजी // सु० // 2 // जीवसहुना जेपीयर / पीछे नहीं खटकायजी। आपवेदन परवेदनसरखी / नहणे न करे घायजी // सु० // 3 // मोहकर्मनें जेवश नपमे / नीरागीनिरमायजी / जयणाकरतो हलुयेचाले / पूंजी मूके पायजी // सु०॥ // 4 // अरहोपरहो दृष्टि न देखे / न करे चालत वातजी। दूषणरहितसूजतोदेखे / तो लिये पाणी नातजी // सु॥ 5 // जूखतृषापीड्या फुःखपीमे / बुटे जो निजप्राणजी / तोपणशुद्ध आहार न लेवे / जिनवराणप्रमाणजी // सु० // 6 // अरसनिरस आहार गवेषे / सरसतणी नहींचाहजी / श्मकरतां जो सरस मले तो / हरखनहीं मनमांहजी // सु० // 7 // शीतकालेंशीतें तनुसूके / उनाले रवि तापजी / विकटपरिसहघटअहीयासे / नाणे मन संतापजी // सु० // // मारे कूटे करे उपत्रव / को कलंकदे शीशजी / कर्मतणा फलजाणीचदीरे / पण नाणे मन रीशजी० // सु० ॥ए // मन वच