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________________ // अहं // // अहंतो ज्ञानलाजः सुरवरमहिताः सिधिसौधस्थसिद्धाः पंचाचारप्रवीणाः प्रगुणगणधराः पाठकाश्चागमानां // लोके लोकेशवंद्याः सकलयतिवराः साधुधर्मानिलीनाः पंचाप्यते सदाप्ता जगति यशसा ते धवलिते, पयःपारावारं करिवरमनौमं कुलिशनृत् // कपर्दी कैलासं सुरवरः सुधां च मृगयते, कलानाथं राहुः कमलनवनो हंसमधुना // 2 // __ सूझसे सूक्ष्म जो गुणसंघात है उसके ग्रहणकरनेमें विचक्षण उर रत्नोंकी खाण समान अहो सङनों सर्व आपलोक सावधान होकर श्रवणकरो, कि इस बृहत्स्तवनावलिनामक अत्युत्तम ग्रन्थमें सर्वत्र पृथवीमंमल में (याने) सर्वसुनियामें बहुत प्रतिष्ठाको प्राप्त करनेवाले, अत एव बहुत बमी है कीर्तिजिणोंकी, और विधानोंमें शिरोमणि ऐसे अनेक गीतार्थोंके रचे दुवे, और बहु बहुतर बोधके देनेवाले, और अत्यंत सुगम प्राचीन ( याने ) जूने जूने बड़े बड़े बहुत स्तवनोंका तथा सिझायोंका संग्रह इस ग्रंथमे है,इस सिवाय और जी बहुत संग्रह है, इसवास्ते हे गुणरागिसक्रानो, आपलोक इस ग्रंथकुं पढके (याने) कंठस्थ करके निर्मल ज्ञानके लजनेवाले होवो, और इस पुस्तककी प्रश्रमावृत्ति उपवाने में युगप्रवरागम श्री श्री 107 श्री श्रीमजि. नकृपाचंजसूरीश्वरजीके स्वहस्तदीक्षिता शिष्या आर्या श्रीमती सौलागश्रीकी शिष्या श्रीमती महिमाश्री तथा श्रीमती जवरश्रीके बृ० स्त० *
SR No.032823
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagubhai Panachand Jhaveri
PublisherBhagubhai Panachand Jhaveri
Publication Year1928
Total Pages418
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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