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________________ જયધવલાટીકામાં સ્થિતિઉદ્વર્તનાનો ઉત્કૃષ્ટ નિક્ષેપ 187 विवक्षित प्रदेशाग्रका उत्कर्षण करके उन्हें आबाधाके बाहर प्रथम निषेकको लेकर अग्रस्थितिसे एक समय अधिक एक आवलि प्रमाण स्थान नीचे उतर कर जो स्थान प्राप्त हो वहाँ तक निक्षिप्त करता शंका - ऐसा क्यों है ? . समाधान - क्योंकि इससे ऊपर उस विवक्षित प्रदेशाग्रकी शक्ति नहीं पाई जाती है / इसलिये उत्कृष्ट आबाधा और एक समय अधिक एक आवलिसे न्यून कर्मस्थिति प्रमाण कर्मनिक्षेप होता है यह बात सिद्ध हुई / शंका - क्या उदयावलिके बाहरकी इसी एक स्थितिका उत्कृष्ट निक्षेप होता है या अन्य स्थितियोंका भी उत्कृष्ट निक्षेप होता है ? समाधान - अब इस प्रश्नका निर्णय करते है - इस स्थितिसे ऊपर आबाधाके भीतर जितनी भी स्थितियाँ स्वीकार की गई हैं उन सभीका प्रकृत उत्कृष्ट निक्षेप होता है / किन्तु इतनी विशेषता है कि आबाधाके बाहर प्रथम निषेककी स्थितिसे नीचेकी एक आवलिप्रमाण आबाधाके भीतरकी स्थितियोंका उत्कृष्ट निक्षेप सम्भव नहीं है, क्योंकि वहाँ क्रमसे आबाधाके बाहरकी निषेकस्थितियोंका अतिस्थापनावलिमें प्रवेश हो जानेके कारण उत्कृष्ट निक्षेपकी हानि देखी जाती है / ' આના ઉપરથી એ નિષ્કર્ષ નીકળે છે કે - (1) ઉદ્વર્તના કરાયેલી સ્થિતિઓનો નિક્ષેપ અબાધાની ઉપરની સ્થિતિઓમાં થાય છે, અબાધાની અંદરની સ્થિતિઓમાં થતો નથી. તેનું કારણ એવું લાગે છે કે અબાધાની અંદરની સ્થિતિઓ તે સમયે બંધાતી નથી. (2) નિર્લાઘાત સ્થિતિઉદ્વર્તનામાં ઉત્કૃષ્ટ નિક્ષેપ ઉત્કૃષ્ટ કર્મસ્થિતિ - (अाधा + समयाधि मावलि) प्रभाए। छे. ते 2 // प्रभाग
SR No.032798
Book TitlePadarth Prakash 11 Karm Prakruti Sankramakaran Udwartakaran Apvartanakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayhemchandrasuri
PublisherSanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust
Publication Year2012
Total Pages266
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size31 MB
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