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________________ 157 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता किं इह चिट्ठइ सप्पो जं इत्तियमित्तयंमि पडिलेहा / इय जंपंतो सासणदेवीए सासिओ खमओ // 6 // पडिलेहणा सकाले देइ फलं किसिबलाइकम्मुव्व / उवओगं तं काले पदिज्जसु लग्गसमयव्व // 7 // कालंमि कीरमाणं किसिकम्मं बहुफलं जहा होइ / इय साहियावि किरिया नियनियकालंमि बोद्धव्वा // 8 // पुढवी आऊकाओ तेऊ वाऊ वणस्सइतसाणं / पडिलेहणापमत्तो छण्हंपि विराहओ भणिओ // 9 // पडिलेहणं कुणंतो मिहो कहं कुणइ जणवयकहं वा / पच्चक्खाणं वा देइ वाएइ सयं पडिच्छइ वा // 10 // " // 54 // अथ विधिना कृतप्रतिलेखनानन्तरं साधुः किं करोतीत्याशङ्क्याहइय काले कयपेहो अत्थं गिण्हिज्ज बीयपोरिसीए / अक्खठवणाइ विहिणा गुरूवि सुद्धं परूवेइ // 55 // इति-पूर्वोक्तप्रकारेण काले-पौरुषीसमये कृतप्रतिलेखनोविहितप्रतिलेखनाविधिः द्वितीयपौरुष्यां-अर्थपौरुष्यां अर्थं गृह्णीयात्, आगमार्थवाचनां गुरुरपि विधिना-कृतिकर्मादिना शुद्धां प्ररूपयति, उत्सूत्रं न पाठयतीत्यर्थः, कथं यथा स्यात् ?, अक्षस्थापनादिपूर्वं यथा स्यात् तथा, यदाहुः "अक्खे वराडए वा कटे पुत्थे०" इत्यादि // 55 // सूत्रवाचनायाः किं फलमित्याशङ्क्याह - ओसन्नोऽवि विहारी कम्मं सोहेइ सुलभबोही य / चरणकरणं विसुद्धं उववूहंतो परूवंतो // 56 // विहारी साधुः-विहारकरणशीलः साधुः अवसन्नोऽपि-प्रमाद्यपि
SR No.032794
Book TitlePadarth Prakash 22 Yatidin Charya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayhemchandrasuri
PublisherSanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust
Publication Year2014
Total Pages246
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size13 MB
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