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________________ सागर वंदना प पू चारित्र चूडामणी आ. देव श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य रत्न शिल्प शास्त्र मर्मज्ञ प.पू आ. देव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म.सा. के पट्टधर जिनशासन रक्षा -समाज उत्कर्ष जिनका मूल मंत्र है एसे राष्ट्रसंत, श्रुत-समुद्धारक प.पू. आ देव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के सयंम जीवन का अर्धशताब्धी वर्ष चल रहा है!पूज्य आचार्यश्री का जन्म अजीमगंज (प.बंगाल) मे हुआ किंतु उनकी दिक्षा-भूमि साणंद (अहमदाबाद)रही! दिक्षा लेने के बाद ही गुरूभगवंतो के आशीर्वाद से वे ज्ञान-ध्यान-सेवा मे इस प्रकार आगे बढे जिस प्रकार सूर्य की रोशनी को प्राप्त कर पद्म का फूल खिलता है, उसी प्रकार से आगे बढकर गुरूदेव ने भारतभर के सिवाय नेपाल तक परिभ्रमण करके एवं विदेशोंमें भी जिनशासन के अनुरागी बनाने के लिए श्रावको द्वारा जिनमंदिरोंका निर्माण कराके जिनशासन के अनेकानेक महान कार्य किए और कर रहे हैं!पूज्य आचार्य श्री की ज्ञान रक्षा के प्रति उत्कृष्ट भावना का प्रत्यक्ष उदाहरण स्वरूप “श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा' हैं! उन्होनें इस कार्य के द्वारा जिनशासन को एक अमूल्य भेंट दी हैं, जिसमें प्राचिन्तम् ग्रंथ एवं मूर्तियों को सुरक्षित रख कर आनेवाली पीढियों को प्रेरणा एवं धर्म के उपर श्रद्धा बढानेवाली बनेगी! एसे सागर के रत्न समान पूज्य श्री के इस पावन प्रसंग पर हम श्री पद्म-वर्धमान संस्कृत धातु-शब्द-रूपावली को उनके पावन चरणों में सादर समर्पित कर उनके दीर्घ सयंम पर्याय के लिए प्रभु से प्रार्थना करते है एवं पूज्य श्री के आशीर्वाद को प्राप्त कर हम भी हमारी आत्मा का कल्याण करें यही अभीलाषा, मुनि राजपद्मसागर मुनि कल्याणपद्मसागर
SR No.032788
Book TitlePadma Vardhaman Sanskrit Dhatu Shabda Rupavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajpadmasagar, Kalyanpadmasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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